4 अक्टूबर यानी पहले चरण के लिए नामांकन का चौथा दिन करीब-करीब बीतते-बीतते लोक जन शक्ति पार्टी ने आख़िरकार फैसला कर ही लिया कि बिहार में उसे नीतीश कुमार की अगुवाई मंज़ूर नहीं है। दिल्ली में हुई एलजेपी संसदीय दल की बैठक में फ़ैसला कर लिया गया कि मोदी जी के हाथ तो मज़बूत करने हैं, लेकिन नीतीश कुमार से दूरी बना कर चुनाव लड़ा जाएगा। राजनीतिक गलियारों में होने वाली फुसफुसाहट को सूंघने वाले जो राजनैतिक विश्लेषण ये मान कर चल रहे थे कि चिराग पासवान के कड़े रुख़ के पीछे भारतीय जनता पार्टी का ही हाथ है, उनके लिए अपनी राय पर पुनर्विचार करने का समय है। उन्हें अब इस सवाल का उत्तर देना होगा कि चिराग पासवान के इस क़दम से बीजेपी को क्या फ़ायदा हो सकता है? या फिर जेडीयू के साथ-साथ बीजेपी के लिए भी चिराग का फ़ैसला बड़ा झटका हो सकता है? अब ये सवाल भी विश्लेषण की मांग कर रहा है।
चुनावी तैयारियों के पहले दौर में ही यानी चार-पांच महीने से एलजेपी नीतीश कुमार के नेतृत्व का विरोध करती आ रही है। पार्टी के एक ज़िला प्रमुख को नीतीश कुमार की तारीफ़ करने पर पद से हाथ धोना पड़ गया था। पार्टी संसदीय दल की बैठक से पहले भी एलजेपी के प्रवक्ता ने नीतीश सरकार की सभी महत्वपूर्ण योजनाओं के विरोध में बयान जारी कर एकला चलो के संकेत तो दे ही दिए थे। लेकिन एक महत्वपूर्ण सवाल ये है कि शुरू से ही नीतीश विरोधी रुख़ अपना कर चिराग पासवान आख़िर वह क्या हासिल करना चाहते थे, जो 4 अक्टूबर, 2020 की दोपहर तक उन्हें नहीं मिला और आख़िरकार उन्होंने अपनी राहें ये सोचकर जुदा कर लीं कि बस अब और नहीं!
एलजेपी ने बिहार में अलग चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया है, लेकिन साथ ही कहा है कि वो नरेंद्र मोदी को मज़बूत करती रहेगी। दिल्ली में तो ठीक है, लेकिन बिहार में अब ये कैसे होगा? इसका एक सीधा सा उत्तर तो यही हो सकता है कि बिहार विधानसभा चुनाव में चिराग बीजेपी उम्मीदवारों के ख़िलाफ़ अपने प्रत्याशी नहीं उतारेंगे। लेकिन एलजेपी की सुई शुरू से ही 143 सीटों पर लड़ने के लिए अटकी है। बिहार में कुल 243 विधानसभा सीटें हैं। विश्वस्त सूत्रों से सुनने में ये आ रहा है कि जेडीयू और बीजेपी के बीच सीटों का बराबर-बराबर बंटवारा होगा और जुड़वां के फ़ार्मूले के आधार पर बीजेपी ने जेडीयू को बड़ा भाई मान लिया है। ऐसे में जेडीयू को 122 और बीजपी को 121 सीटें मिलेंगी। अगर चिराग 143 सीटों पर लड़ते हैं, तो इसका सीधा सा मतलब यही हुआ कि वे कम से कम 21 सीटों पर बीजेपी उम्मीदवारों के ख़िलाफ़ भी अपने प्रत्याशी उतारेंगे। सवाल है कि इससे मोदी जी के हाथ मज़बूत कैसे होंगे?
चिराग के फ़ैसले के बाद अब ये भी संभव है कि एनडीए में सीटों के बंटवारे पर नए सिरे से विचार किया जाए। एलजेपी के फ़ैसले के बाद यह कहना तो एकदम सही होगा कि इससे एनडीए की संयुक्त ताक़त कम ही होगी। ऐसे में क्या अब भी एलजेपी को मनाने की कोशिश बीजेपी की तरफ़ से होगी? ऐसा हुआ, तो ये जल्द ही होगा, क्योंकि अब पहले चरण के चुनाव की वोटिंग की तारीख़ 28 अक्टूबर क़रीब आती जा रही है।
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