नई दिल्ली। भारत 1947 में स्वाधीन हुआ परन्तु हम अपने स्व के तंत्र को विकसित करने के लिए लगातार कार्य कर रहे हैं। हमारी स्वाधीनता का संघर्ष भी स्वतंत्रता को स्थापित करने के लिए था। आज का भारत हमारे 100 वर्ष पूर्व के विचारकों और चिन्तकों की संकल्पना पर आधारित है। भविष्य के भारत की परिकल्पना हमें आज करनी होगी। ये विचार पंचनद शोध संस्थान के अध्यक्ष प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने दिल्ली विश्वविद्यालय एवं पंचनद शोध संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में “कैसा होगा भारत” विषय पर आयोजित संगोष्ठी में व्यक्त किए। कार्यक्रम में प्रसिद्ध शिक्षाविद् प्रो. बृज किशोर कुठियाला द्वारा संपादित “भारत 2047 : एक सामूहिक संकल्पना” और “BHARAT 2047 : A COLLECTIVE VISION” इन दो पुस्तकों का विमोचन भी किया गया। इन दोनों पुस्तकों में समाज के प्रबुद्ध विचारकों, चिन्तकों और बुद्धिजीवियों ने भारत के शताब्दी वर्ष की अपनी सामूहिक संकल्पना को प्रस्तुत किया है। इन पुस्तकों में धर्म, विद्या, राजनीति, शिक्षा, भाषा, संस्कृति, विधि, विज्ञान, तकनीकी, कला, पर्यावरण, सामाज और राष्ट्र के प्रमुख 36 विषयों पर, आगामी 25 वर्षों की सामूहिक परिकल्पना पर आधारित निबंधों (जिनमें 16 हिन्दी में और 20 अंग्रेजी भाषा में हैं) को समाहित किया गया है।
हमें भविष्य के लिए सपने देखने चाहिए, खुली ऑखों से देखे गए सपने पूरे होते हैं – प्रो. कुठियाला
कार्यक्रम में “भारत 2047 : सामूहिक संकल्पना” विषय पर मुख्य प्रस्तुति प्रो. बृज किशोर कुठियाला जी ने की। उन्होंने कहा कि समाज का बुद्धिशील वर्ग भविष्य के समृद्ध समाज की परिकल्पना करता है। हमें खुली ऑखों से समाज और राष्ट्र की उन्नति के सपने देखने चाहिए। भारत की स्वाधीनता के शताब्दी वर्ष की हम जो भी संकल्पना करेंगे, अगले पच्चीस वर्षों में भारत उसी ओर प्रगति करता हुआ दिखेगा। सामूहिक संकल्पना से राष्ट्र का सामूहिक विचार बनता है, उसी सामूहिक विचार से भाविष्य की दिशा निर्धारित होती है। वर्तमान में बहुत से ऐसे कार्य संभव हुए हैं, जो विगत दस वर्ष पूर्व असंभव प्रतीत होते थे, वे कभी स्वप्न थे लेकिन आज हमारी नीतियों और व्यवहार का हिस्सा हैं। अतः हमें भविष्य के भारत के बारे में सोचना चाहिए। यह पुस्तक भविष्य के भारत के प्रति हमारी सामूहिक परिकल्पनाओं का प्रारम्भिक प्रयास है। हमारी इन परिकल्पनाओं का क्रियान्वयन भी विश्वविद्यालयों से ही होगा, अतः यह दायित्व भी हम सभी शिक्षकों का है, हमें राष्ट्रीय शिक्षा नीति के लागू होने के बाद के भारत की परिकल्पना आज करनी है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि भारत आज सुरक्षा, शक्ति, शिक्षा, तकनीकी और विज्ञान के क्षेत्र में उन्नत राष्ट्र है, आज भारत राजनीतिक रूप से भी वैश्विक स्तर पर प्रभावी है। यह सब हमारे विचारकों द्वारा वर्षों पूर्व की गई भारत की परिकल्पना का ही मूर्त रूप है। इस पुस्तक में भविष्य के भारत की सामूहिक संकल्पना है। हमें यह पुस्तक पढनी चाहिए और भविष्य की इन संकल्पनाओं को कैसे मूर्त रूप दिया जाए, इस पर भी सोचना चाहिए। भविष्य के भारत की इस संकल्पना को मूर्त रूप देने के लिए हमें 2047 तक भारत के विकास की गति से किसी भी प्रकार का समझौता नहीं करना चाहिए। पुस्तक के लेखकों और विश्वविद्यालय के वरिष्ठ आचार्यों ने भी संगोष्ठी में भाग लिया और आम सहमति बनी कि हम पहले भविष्य के भारत के बड़े सपने देखेंगे फिर उन सपनों को साकार करने के लिए पुरुषार्थ करेंगे। असंभव को भी संभव कर दिखाने की हमारी आदत भी है और योग्यता भी।
कार्यक्रम का प्रारम्भ सरस्वती वंदना से हुआ। इस उपलक्ष्य में प्रो. श्री प्रकाश ने दिल्ली विश्वविद्यालय के शताब्दी वर्ष का संक्षिप्त विवरण भी प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. बलराम पाणि, डीन ऑफ कॉलेज, डॉ विकास गुप्ता, कुलसचिव दिल्ली विश्वविद्यालय तथा पंचनद शोध संस्थान के निदेशक डॉ. कृष्ण चन्द्र पाण्डेय सहित दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राध्यापक, शोधार्थी एवं समाज के प्रबुद्ध जन 200 से भी अधिक संख्या में उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन पंचनद शोध संस्थान, दिल्ली प्रान्त के समन्वयक संजय मित्तल ने किया।