शुक्रवार को 108 कलशों से स्नान करने के बाद भगवान जगन्नाथ उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा बीमार पड़ जायेंगें । तीनों पंद्रह के दिन के स्नान बेदी से सीधे अणासर में चले जायेंगें । अणासर गृभगृह से दूर एंकातवास स्थान है । भक्तों को दर्शन नहीं देगें केवल तरल पेय लेंगें अभ्यंगं ( मालिश ) करवायेंगें । हिंदु केलेंडर के जयेष्ठ महीने की पूर्णिमा को स्नान बेदी पर स्नान करने के बाद आदि काल से भगवान जगन्नाथ पंद्रह दिन के लिए अणासर में चले जाते हैं । जयेष्ठ पूर्णिमा भगवान जगन्नाथ की जन्मतिथी है । इस दिन से लेकर एक महीने तक वो दैतापति सेवकों के संरक्षण में रहते हैं । भगवान जगन्नाथ का स्नान करना बीमार पड़ना और एंकातवास में जाना कोई नयी बात नहीं है । लेकिन इस साल 2020 में जब कोरोना आया और 14 दिन के लिए मरीजों को क्वारंटाईन होना पड रहा है तो भगवान जगन्नाथ की इस नीति ( ओड़िशा में भगवान की पूजा के विधि विधान को नीति कहा जाता है ) को आधुनिक परिपेक्ष्य में अणासर नीति समझने का अवसर मिला । जिसे हम कोरोना काल में क्वारन्टाईन कह रहे हैं वो तो हमारी हज़ारों वर्ष पुरानी नीति है ।
चारों दिशाओं में चार पवित्र धामों में से एक श्री जगन्नाथ धाम भारत के पूर्वी राज्य ओड़िशा के शहर पुरी में है । पुरी बंगाल की खाड़ी के किनारे बसा पवित्र शहर है । यहां भगवान विष्णु जगन्नाथ रूप में विराजते हैं । ये एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां भगवान के विग्रह काष्ठ के हैं और यहां भगवान अपने भाई और बहिन के साथ हैं । पूरे देश में यही एकमात्र ऐसा मंदिर है जहां वैदिक ब्राहम्ण और शबर जनजाति के सेवक दैतापति मिल कर भगवान की नीतियां करते हैं और पूजा पाठ करते हैं । अणासर में एंकातवास,रथ यात्रा ,बहुड़ा यात्रा , सोना वेष , अधर पाना और नीलाद्री विजय लगभग एक महीना भगवान जगन्नाथ दैतापतियों की पूर्ण देखरेख में रहते हैं । अभी बात केवल सामयिक विषय से संबंधित । बीमार पड़ने के बाद भगवान वैसे ही रहते हैं जैसे कोई भी बीमार व्यक्ति रहता है । रत्न सिंहासन पर जो वस्त्र भगवान पहनते हैं वो उतार देते हैं बिल्कुल सादे सूती श्वेत रंग के आराम देह वस्त्र पहनते हैं । जो भी आभूषण शरीर पर होते हैं वो सब उतार दिए जाते हैं । जिस कमरे में उन्हें रखा जाता है वहां केवल दैता पति जा सकते हैं । दैतापति स्वयं को भगवान जगन्नाथ का भाई मानते हैं । यानि केवल आपके परिवार के व्यक्ति ।
भोजन में केवल फल , जूस और तरल पेय । बीमार पड़ने के पांचवे दिन बड़ा उड़िया मठ से फुलेरी तेल आता है जिससे भगवान के शरीर पर मालिश की जाती है । इस तेल को बनाने की विधि भी बहुत अनोखी है । मिट्टी के एक बर्तन में तिल का तेल कुछ औषधियां और सफेद फूल भर कर ज़मीन के नीचे गाड़ दिया जाता है । हर वर्ष स्नान पूर्णिमा के दिन तेल का बर्तन दबा दिया जाता है और एक साल बाद स्नान पूर्णिमा के दिन ही बर्तन ज़मीन से निकाला जाता है । आयुष मंत्रालय भी आजकल बता रहा है कि कोरोना से बचने के लिए अपने हाथ पैरों में तेल की मालिश करों और कुछ बूंदें नाक में भी डालो । भगवान पर रक्त चंदन और कस्तूरी का लेप किया जाता है ।
भगवान जगन्नाथ के वैद्य उनके लिए काढ़ा से बने मोदक लेकर आते हैं । दशमूलारिष्ट में नीम , हल्दी , हरड़ , बेहड़ा, लौंग आदि अनेक जड़ी बूटियां मिलाते हैं और नर्म मोदक बना कर भगवान को दसवें दिन खिलाए जाते हैं । और क्या क्या औषधियां और जड़ी बूटियां है राजबैद्य ये गुप्त रखते हैं । एक साल तक श्री मंदिर में रह कर भगवान लाखों भक्तों को दर्शन देते हैं दिन में उनकी अनेकों सेवाएं होती हैं । श्री मंदिर के गृभगृह में रत्न सिंहासन के भीतर बिजली या बिजली का कोई उपकरण प्रयोग नहीं किया जाता । भगवान के विग्रह को भारी भरकम पोशाक , गहने फूलों का श्रृंगार ,धूप दीप आरतियां कुल मिला कर रात की शयन आरती तक लंबा शेड्यूल । अणासर में भगवान को मंदिर में होने वाले दैनिक क्रियाओं से मुक्ति मिल जाती है । भक्तों को भी पंद्रह दिन दर्शन नहीं देते । यानि सोशल डिस्टेंसिंग का पूरा पालन । खानपान बिल्कुल बदल जाता है तरल पेय और फल । चौदह दिन के बाद उनके विग्रहों को फिर से सजाया जाता है । रथ यात्रा वाले दिन उन्हें खिचड़ी बना कर खिलायी जाती है । रथ यात्रा से पहले फिर रत्न सिंहासन पर आते हैं भक्तों को नवजौबन ( नवजौबन की तुलना आप रिजुनिवेशन से भी कर सकते हैं ) दर्शन देकर रथ यात्रा पर अपनी मौसी रानी गुंडीचा के घर चले जाते हैं ।