आपने अकसर बहुत से लोगों को कहते सुना होगा — अरे हमने तो अपनी बेटी को बेटों की तरह पाला है ………. हमारी बेटी बेटों से कम है क्या । मेरी राय ऐसे लोगों के बारे में बहुत अच्छी नहीं है । मुझे लगता है जो लोग ऐसी सोच रखते हैं वो कहीं न कहीं बेटियों को लेकर हीन भावना का शिकार हैं । वरना क्या ज़रूरत है बेटियों की तुलना बेटों से करने की । बेटियों की योग्यता का मानदंड बेटे ही क्यों ?
क्या हम और हमारा समाज बेटी को बेटी नहीं रहने देना चाहते । बेटी होने में क्या बुराई है फिर उनको भगवान ने उनके नैसर्गिक गुण दिए हैं और बेटों को उनके नैसर्गिक गुण दिए हैं । क्या हम किसी को उसके नैसर्गिक गुणों के आधार पर श्रेष्ठ नहीं मान सकते ? ये तुलना मुझे ऐसी ही लगती है जैसे मैं कहूं अरे मेरी बगिया की चमेली क्या गुलाब से कम है । देखो मेरा चमेली का फूल बिल्कुल गुलाब जैसा लगता है । लेकिन क्आया आपके सोच लेने भर से चमेली का फूल गुलाब बन जाएगा ? आप कहेंगें क्या बेकार की तुलना की है चमेली का फूल गुलाब कैसे हो सकता है । ठीक इसी तरह बेटी भी बेटा नहीं हो सकती । और बेटा बेटी नहीं हो सकता । पता नहीं क्यों हमारे समाज ने बेटियों को लेकर ऐसे ऐसे भ्रम क्यों पाल लिए । अकसर लोग अपनी छोटी छोटी बेटियों के बाल बिल्कुल लड़कों जैसे कटवा देते हैं उन्हें फ्रॉक के बजाए पैंट कमीज़ जींस पहनाना ज्यादा पसंद करते हैं । वैसे ये कपड़े पहनाने में कोई बुराई नहीं है लेकिन क्या आपने कभी देखा है कोई मां अपने बेटे को फ्रॉक पहनाती हो , काजल लगाती हो बाल बढ़ा कर चोटियां बनाती हो , चूड़ियां पहनाती हो या बिंदी लगाती हो ? मैं जानती हूं आप सब का उत्तर ना में ही होगा । आप कहेंगें अरे लड़के तो लड़कों की तरह ही अच्छे लगते हैं । तो फिर लडकियां लड़कियों की तरह ही अच्छी क्यों नहीं लग सकती ? हमने अपने मन में बेटियों को लेकर हीनता का भाव पैदा कर लिया । हांलांकि अब समाज की सोच बहुत सीमा तक बदली है । लेकिन अब हम एक एक्स्ट्रीम से दूसरे एक्स्ट्रीम तक पहुंच गए हैं । बेटियां ही बहुच अच्छी हैं और बेटे नकारा निकम्मे हैं माता पिता को प्यार नहीं करते देख भाल नहीं करते , ये भी मुझे अतिश्योक्ति लगती है । मेरा मानना है हम तुलना करना बंद कर दें और दोनों को उनका स्थान दें ।
पिछले दिनों एक मनोवैज्ञानिक से बात हो रही थी उनका कहना था हमारा समाज बचपन से बेटियों की तुलना बेटों से करता है वो जो भी अच्छा करती हैं उसकी तुलना बेटों से की जाती है । उसे बचपन से बताया जाता है तुम लड़कों से कम नहीं हो । इससे उनके भीतर एक दोहरा व्यक्तित्तव पलता है शरीर लड़की का है और लगातार तुलना उनसे जिन्हें प्रकृति ने उनसे सर्वथा भिन्न बनाया है । जिनको प्रकृति स्वभाव और गुण अलग दिए हैं और मन के भीतर का ये द्वंद उन्हें असामन्य बना देता है ।
हम भी केवल दो बहने हैं 60 के दशक में केवल दो बेटियां होना अभिशाप माना जाता था बेटा ज़रूर होना चाहिए ये सामाजिक मान्यता थी लेकिन मेरे पापा ने फैसला कर लिया बेटियां ही ठीक हैं । उन्होनें हमें एक बात हमेशा समझाई तुम केवल शारीरिक संरचना में लड़कों से भिन्न हो लेकिन बौद्धिक स्तर पर भिन्न नहीं हो तुम में भी बुद्धि है अपनी बुद्धि के बल पर आगे बढ़ो । लेकिन कभी नहीं कहा मेरी बेटियां क्या बेटों से कम हैं । हाल ही में हमारी मित्र BANDANA PANDY के बेटे का विवाह हुआ . जब वो अपने बेटे के लिए रिश्ता पक्का करने गयीं तो उन्होनें साफ कहा — मुझे बेटी नहीं मुझे बहु ही चाहिए । बेटी का माता पिता के घर में अलग तरह का स्थान होता है दायित्व अलग होते हैं । और बहू का अपना स्थान होता है । मुझे बहू चाहिए । उनकी होने वाली बहू ने उनकी भावनाओं को समझा और वो भी बहुत खुश हुई कि उसकी सास के विचार बहु और बेटी को लेकर स्पष्ट हैं ।
परिवार बेटों के बिना अधूरा है तो बेटियों के बिना भी अधूरा है । भाई को बहन की और बहन को भाई की ज़रूरत होती है । कोई किसी का स्थान नहीं ले सकता । इसलिए बेटियों को बेटी ही रहने दो उनकी तुलना बेटों से मत करो ।