अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को (ग्वालियर) मध्यप्रदेश भारत में हुआ। इनके पिता का नाम कृष्णा बिहारी वाजपेयी और माता का नाम कृष्णा देवी था।
इनके पिता अपने गाँव के स्कूल में स्कूलमास्टर और एक महान कवि भी थे। साथ ही इनके पिता सत्यवादी, ईमानदार और आदर्शवादी अनुशासित व्यक्ति थे जिसके चलते अटल बिहारी वाजपेयी को कवित्व का गुण अपने पिताजी से विरासत में प्राप्त हुआ था।
अटल जी देश को शोकाकुल छोड़कर 17 अगस्त 2018 को अनंत काल के लिए चिर निद्रा में विलीन हो गए। अटल जी का जीवन सम्पूर्ण भारत के लिए प्रेरणा स्रोत रहा है।
प्रारंभिक जीवन :-
अटल बिहारी वाजपेयी बचपन से ही दिखने में सुंदर थे जिसके कारण इनके माता पिता इनको बहुत ही प्रेम करते थे। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा गोरखी विद्यालय से प्राप्त की।
बाद में आगे की पढाई ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से हिन्दी, इंग्लिश और संस्कृत विषय से बीए (जिसे अब लक्ष्मीबाई कॉलेज के नाम से जाना जाता है) की शिक्षा प्राप्त किया।
फिर पोस्ट ग्रेजुएट की पढाई कानपुर के दयानंद एंग्लो-वैदिक कॉलेज से पोलिटिकल साइंस से M.A. किया और परीक्षा में सबसे अधिक अंक प्राप्त किए जिसके चलते उनको फर्स्ट क्लास की डिग्री से सम्मानित किया गया।
सामजिक जीवन : (Social Liife)
अपने छात्र जीवन के दौरान ही अटल बिहारी वाजपेयी जी पढाई के साथ साथ खेलकूद जैसे कब्बडी, गुल्ली डंडा, में भी विशेष रूचि रखते थे। सन 1939 में एक स्वयंसेवक के रूप में राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ (आरएसएस) में शामिल हो गये।
फिर राष्ट्रीय स्तर के वाद-विवाद प्रतियोगिताओ में हिस्सा लेते रहे। इसी दौरान अपनी एलएलबी की पढाई भी बीच में छोड़ दिया और पूरी निष्ठा के साथ संघ के कार्यो में जुट गये।
अटल बिहारी वाजपेयी को राजनीति का पाठ डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी से प्राप्त हुआ। फिर पंडित दीनदयाल उपाध्याय के राजनितिक निर्देशन में आगे बढ़ते रहे। इसी दौरान पांचजन्य, दैनिक स्वदेश, वीर अर्जुन और राष्ट्रधर्म जैसी पत्रिकाओं का कुशल संपादन किया।
सम्पादन का कार्य भी बखूबी रूप से किया और महात्मा रामचन्द्र वीर द्वारा रचित महान कृति “विजय पताका” को पढ़कर अटल बिहारी वाजपेयी का पूरे जीवन की दिशा ही बदल गयी।
आजादी के लडाई में अटल बिहारी वाजपेयी का योगदान (Atal Bihari Vajpayee: Freedom Fighter of India)
अटल बिहारी वाजपेयी ने हर भारतीयों के तरह आजादी की लड़ाई में सक्रीय भूमिका निभाई और सन 1942 में भारत छोडो आंदोलन के दौरान अन्य नेताओ के साथ जेल भी गए। जहां उनकी पहली मुलाकात डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी से हुआ जो कि अटल बिहारी वाजपेयी के लिए डॉक्टर साहब राजनितिक गुरु साबित हुए।
राजनितिक जीवन :- (Political Life)
अटल बिहारी वाजपेयी के राजनितिक जीवन की शुरुआत आजादी के लड़ाई के दौरान ही शुरू हो गयी थी। फिर डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में अपनी पत्रकारिता छोड़कर सन 1951 भारतीय जनसंघ में शामिल हो गए।
फिर सन 1955 में पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा, जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी को हार का सामना करना पड़ा। लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी ने हिम्मत नहीं हारी। कविता में उन्होंने लिखा-
बाधाएँ आती हैं आएँ
घिरें प्रलय की घोर घटाएँ
पावों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ
निज हाथों में हँसते-हँसते
आग लगाकर जलना होगा
क़दम मिलाकर चलना होगा
फिर दोबारा सन 1957 में उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के बलरामपुर लोकसभा से चुनाव लड़ा और फिर विजयी होकर जनसंघ के प्रत्याशी के रूप में संसद पहुंचे। इस तरह लगातार 20 साल सन 1957 से 1977 तक जनसंघ के संसदीय दल के नेता रहे।
इसी दौरान मोरारजी देसाई की सरकार में सन 1977 से सन 1979 तक विदेशमंत्री बने और इस दौरान विदेशो में भारत की एक अलग ही पहचान बनाई।
फिर जनता पार्टी की स्थापना के बाद सन 1980 में जनता पार्टी के विचारो से असंतुष्ट होने बाद जनता पार्टी को छोड़ दिया और फिर भारतीय जनता पार्टी (BJP) की स्थापना किया।
पश्चात् 6 अप्रैल 1980 को अटल बिहारी वाजपेयी को भारतीय जनता पार्टी का अध्यक्ष पद सौंप दिया गया। अटल जी पहली बार 1996 में मात्र 13 दिन के लिए भारत के प्रधानमंत्री बने।
दूसरी बार 1998 से 2004 तक प्रधानमंत्री पद के लिए चुने गए। अटल जी पंडित जवाहरलाल नेहरु के बाद एक मात्र प्रधानमंत्री थे जिन्होंने इस पद को 3 बार सुशोभित किए। अपने नाम के अनुरूप अटल जी अपने विचारों के लिए अटल माने जाते थे। जिसका जिक्र उनके संसद में कहे गये इस नारे से पता चलता है।
“अंधेरा छटेगा, सूरज निकलेगा और कमल खिलेगा”
प्रधानमंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी का कार्यकाल
परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र बना भारत
अटल सरकार ने अपने कुशल नेतृत्व के दम पर संयुक्त राष्ट्र के शर्तो को पूरा करते हुए 11 मई और 13 मई को सम्पूर्ण विश्व को चौंकाते हुए भारत के शर्तानुसार जल, थल और आकाश में परमाणु परिक्षण न करते हुए 5 भूमिगत परमाणु परिक्षण किया।
इस तरह से भारत को विश्व शक्ति के मानचित्र पर परमाणु संपन्न राष्ट्र बना दिया। इस परमाणु परिक्षण की विश्वसनीयता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बड़े बड़े दावे करने वाले विदेशी पश्चिमी देशों को उनके उपग्रहों, तकनिकी उपकरणों से भी इस परिक्षण का पता नहीं लगा पाए।
जिसके फलस्वरूप भारत पर अनेक प्रतिबन्ध लगा दिए गए। लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी ने विदेशो के आगे न झुकते हुए भारत को विश्व पटल पर अलग ही पहचान दिलाई।