बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह 12 जुलाई को बिहार दौरे पर पहुंच रहे हैं. 2015 के अंत में हुए बिहार विधानसभा चुनाव के बाद यह उनका पहला दौरा होगा. हालाकि कई बार उनके दौरे की चर्चा होती रही, लेकिन, किसी ना किसी कारण उनका दौरा टलता रहा.
लेकिन, अब बिहार में हालात काफी बदल गए हैं. 2015 में हार के बाद बीजेपी विपक्ष में थी. अब नीतीश कुमार के साथ सरकार चला रही है. जेडीयू-बीजेपी की ब्रेकअप के बाद वाली दोस्ती की पहली सालगिरह इसी महीने के आखिर में है. लेकिन, इससे पहले एक साल के भीतर कई मोर्चे पर तनातनी भी होती रही है.
यह तनातनी गठबंधन में बड़े भाई और छोटे भाई की भूमिका को लेकर है. जेडीयू बिहार में नीतीश कुमार को ही सबसे बड़ा चेहरा बता रही है. जेडीयू की कोशिश सीटों के बंटवारे के वक्त भी बीजेपी से ज्यादा या फिर बराबरी पर समझौते की है. जेडीयू किसी भी कीमत पर बीजेपी की जूनियर पार्टनर के तौर पर चुनाव लड़ने के मूड में नहीं है.
उम्मीद है बिहार दौरे के वक्त अमित शाह अपनी सहयोगी जेडीयू के मुखिया को मनाने की कोशिश जरूर करेंगे. इसके संकेत शाह ने अपने चेन्नई के दौरे में कर दिया है. तमिलनाडू में पार्टी की तैयारियों के लिए चेन्नई पहुंचे बीजेपी अध्यक्ष ने कहा ‘हम अपने मौजूदा सहयोगियों को सम्मान देंगे, लोकसभा चुनाव से पहले नए दोस्त लाएंगे और राष्ट्र को एक अच्छी सरकार देंगे.’
भले ही अमित शाह ने यह बयान तमिलनाडु के पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए दिया है, लेकिन, इसका असर बिहार में भी दिखेगा. बिहार दौरे से पहले इस बयान से जेडीयू-बीजेपी के बीच जारी तनातनी काफी हद तक खत्म होती दिख रही है.
जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार के भी आरजेडी के खिलाफ सख्त तेवर के बाद अब बीजेपी के साथ रिश्तों में नरमी के संकेत मिलने लगे हैं. जेडीयू भी बेसब्री से अमित शाह के बिहार दौरे की प्रतीक्षा कर रही है.
अमित शाह के बिहार दौरे के वक्त उनके दिमाग में भी इन चुनौतियों का एहसास होगा. उन्हें भी पता है कि बिहार में पार्टी संगठन को मजबूत बनाए रखने के साथ-साथ सहयोगियों के दबाव से भी दो-चार होना पड़ेगा. खासतौर से बिहार में सबसे बड़ी सहयोगी जेडीयू को खुश रखने औऱ साथ रखने की चुनौती उनके लिए बडी है.
दरअसल, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह अलग-अलग राज्यों का दौरा कर रहे हैं. इस दौरान उनकी लोकसभा चुनाव तैयारी टोली से लगातार रणनीति पर चर्चा हो रही है. शाह की कोशिश है कि हर हाल में बूथ स्तर पर पार्टी कार्यकर्ताओं की बेहतर ढंग से तैनाती की जाए. यूपी से लेकर पश्चिम बंगाल तक हर राज्य में अमित शाह की तरफ से शक्ति केंद्र प्रमुखों से मुलाकात हो रही है. उन्हें काम करने का मंत्र दे रहे हैं. शाह इस दौरान सोशल मीडिया के वोलंटियर्स से लगातार रू-ब-रू हो रहे हैं.
अमित शाह की रणनीति के केंद्र में बूथ स्तर पर मैनेजमेंट के अलावा सोशल मीडिया को भी चुस्त-दुरुस्त करने पर जोर दिया जा रहा है. बिहार दौरे में अमित शाह का फोकस इस पर रहेगा.
शाह की कोशिश उन इलाकों में अपनी पार्टी की पैठ बढ़ाने की है जहां अबतक पार्टी कमजोर रही है. खासतौर से उन बूथों पर जहां मुस्लिम और यादव वोटर की तादाद सबसे ज्यादा है. अमित शाह इन इलाकों में बूथ-स्तर पर काम करने वाले वोलंटियर्स को तैनात करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. सूत्रों के मुताबिक अमित शाह की कोशिश आरजेडी के ‘माय़’ समीकरण को तोड़ने की है.
बीजेपी अध्यक्ष नित्यानंद राय यादव समुदाय से आते है. बीजेपी की कोशिश उनके सहारे यादव मतदाताओं में अपनी पैठ बढाने की है. निचले स्तर पर यादव समुदाय के पार्टी कार्यकर्ताओं को साधने की कोशिश भी हो रही है. इसके अलावा मधेपुरा के सांसद पप्पू यादव की पार्टी जनाधिकार पार्टी को भी आने वाले दिनों में एनडीए का हिस्सा बनाकर बीजेपी यादव समुदाय को जोड़ने की कोशिश कर रही है.
हालांकि अमित शाह के दौरे के एजेंडे में फोकस दलित, पिछड़े और अति पिछड़े समुदाय को लेकर रणनीति तैयार करने की होगी. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को भी पता है कि बीजेपी 2014 के लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन को अगर दोहराना चाहेगी तो उसे हर हाल में सामाजिक समीकरण को दुरुस्त करना होगा.