आजादी की लड़ाई के दौरान 26.04.1942 को बाबा साहब ने कांग्रेस के नेताओं से कहा था – “मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि आजादी के लिए तुम जैसे लड़ रहे हों, आपसे ज्यादा ताकत से मैं लड़ूंगा, लेकिन मुझको भरोसा तो दिलाओं कि स्वराज में मेरे समाज की क्या भागीदारी होगी। मुझको विश्वास तो दिलाओं कि तुम मेरे बंधुओं को स्वतंत्र कर दोगे…मैं देश की आजादी तो चाहता हूँ लेकिन साथ-साथ मेरे उन बंधुओं की भी आजादी चाहिए!”
बाबा साहब ने महाड़ चावदार तलाब में पानी के अधिकारों के सत्याग्रह के समय कहा था कि अगर असपृश्यता की रूढ़ि से मुक्त हो कर आत्म स्वातंत्र्य प्राप्त होता है तो इससे केवल दलित समाज अपनी ही उन्नति नहीं करेगा, बल्कि अपने पराक्रम से, बुद्धि से, देश की उन्नति के लिए कारण सिद्ध होंगे। हमारा आंदोलन केवल पतितों के उद्धार का नहीं है, इसमें लोक – संग्रह की भूमिका है। हमने जो कार्य हाथ मे लिया गई, वह केवल अपने उद्धार के लिए नही, हिन्दू धर्म के उद्धार के लिए है और यह सत्य है, यही राष्ट्र कार्य है।
बाबा साहब मानते थे कि असपृश्यता की रूढ़ि अन्याय कारक है, वह समाप्त होनी चाहिए। एक ही धर्म के लोगों को आपस मे समता का व्यवहार करना चाहिए, समता के लिए संवैधानिक व्यवस्था होनी चाहिए, जातिभेद, असपृश्यता के पीछे धर्म मान्यता खड़ा करना अधर्म है – इसे समाप्त होना चाहिए!
25.11.1949 को संविधान सभा की समापन बैठक में बाबा साहब ने कहा कि संविधान से राजनीतिक समता तो आई है, पर हमें राजनीतिक लोकतंत्र को सामाजिक लोकतंत्र में भी बदलना होगा। एक ऐसा समाज जिसमे स्वाधीनता हो, समानता हो और बंधुत्व हो। अगर ऐसा नही हुआ तो जिनके साथ असमानता का व्यवहार होता है, उनके लिए केवल राजनीतिक लोकतंत्र किस काम का रहेगा।
बाबा साहब का यह कार्य अभी शेष है। अनुसूचित समाज की सम-प्रतिष्ठा हो, उन्हें आगे बढ़ने के अवसर हों, शैक्षिक, आर्थिक व व्यवसायिक क्षेत्रों में उन्हें आगे आ कर, समान स्तर पर लाना सुनिश्चित हो, जहां निर्णय होते हों उन सब मंचो पर इनकी भागीदारी हो – इन सब लक्ष्यों के लिए शेष काम पूरा करना है। यही अंत्योदय है।
बाबा साहब की जयंती पर विश्व हिंदू परिषद, इन लक्ष्यों पर काम करते रहने के लिए पुनः अपने को समर्पित करती है।