शरत सांकृत्यायन
स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर आजतक एक गीत हम झूम झूम कर गाते हैं, ” सारे जहां से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा”। इस गीत को लिखा था अल्लामा इकबाल ने। आज जिन्ना की तस्वीर पर बवाल है। होना भी चाहिए। जिसने देश का बंटवारा करवाया उसकी तस्वीर को हम क्यूं सजाएं? वह शख्स पाकिस्तान का कायदे आजम हो सकता है लेकिन हमारे लिए तो खलनायक ही है। फिर उससे प्रेम क्यों? आजादी के पहले ये सारे लोग हिन्दुस्तान के नेता थे। इनकी तमाम तस्वीरें हैं गांधी, नेहरू, पटेल, अंबेडकर और अन्य बड़े नेताओं के साथ। मुस्लिम लीग भी कांग्रेस की तरह हिन्दुस्तान का ही एक प्रमुख राजनीतिक दल था। लेकिन यही दल देश के बंटवारे का कारण बना और इसके नेता हमारे लिए विलेन बन गये जो स्वाभाविक है। आजादी के बाद ही हमने इन नेताओं को, उनकी यादों को, आजादी की लड़ाई में उनके योगदान को इतिहास के पन्नों में दफन कर दिया और भरसक कोशिश की कि उनकी कोई चर्चा न हो। लेकिन जो हमारे इतिहास का हिस्सा हैं, लाख कोशिशों के बाद भी उनकी निशानियां यहां वहां बिखरी मिल ही जाती हैं। तो जब दिख जाए आराम से उतार कर किसी अंधेरे कोने में डाल दें। इसपर सियासत कैसी? जिन्हें जिन्ना से मुहब्बत थी वो उसके साथ पाकिस्तान चले गये और जिन्हें हिन्दुस्तान से मुहब्बत था वही यहां रहे। फिर आज सत्तर साल बाद जिन्ना से मुहब्बत या नफरत को लेकर बहस ही क्यों हो? अब अल्लामा इकबाल को ही ले लें। देश के बंटवारे और पाकिस्तान के निर्माण में जिन्ना से कम बड़ी भूमिका इकबाल की नहीं रही है। हालांकि 1938 में ही इनका निधन हो गया लेकिन इन्हें पाकिस्तान का जनक माना जाता है क्योंकि वह “पंजाब, उत्तर पश्चिम फ्रंटियर प्रांत, सिंध और बलूचिस्तान को मिलाकर एक राज्य बनाने की अपील करने वाले पहले व्यक्ति थे”, इंडियन मुस्लिम लीग के 21 वें सत्र में ,उनके अध्यक्षीय संबोधन में उन्होंने इस बात का उल्लेख किया था जो 29 दिसंबर,1930को इलाहाबाद में आयोजित की गई थी। भारत के विभाजन और पाकिस्तान की स्थापना का विचार सबसे पहले इक़बाल ने ही उठाया था। 1930 में इन्हीं के नेतृत्व में मुस्लिम लीग ने सबसे पहले भारत के विभाजन की माँग उठाई। इसके बाद इन्होंने जिन्ना को भी मुस्लिम लीग में शामिल होने के लिए प्रेरित किया और उनके साथ पाकिस्तान की स्थापना के लिए काम किया। इन्हें पाकिस्तान में राष्ट्रकवि का दर्जा हासिल है। इन्हें अलामा इक़बाल (विद्वान इक़बाल), मुफ्फकिर-ए-पाकिस्तान (पाकिस्तान का विचारक), शायर-ए-मशरीक़ (पूरब का शायर) और हकीम-उल-उम्मत (उम्मा का विद्वान) भी कहा जाता है। तो सवाल है कि मुफ्फकिर-ए-पाकिस्तान के लिखे तराना ए हिन्द, “सारे जहां से अच्छा” को आज भी हम क्यों झूम झूम कर गा रहे हैं? एक बार ठंडे दिमाग से सोचिएगा जरूर।