आज़ से ठीक 2290 वर्ष पूर्व सम्राट अशोक ने पाटलिपुत्र की महान धरती पर एक भव्य कुआं का निर्माण कराया था, लोगों की ऐसे मान्यताएं हैं की इस कुआं के पानी से एक बार स्नान करने पर चेचक तथा कुष्ट रोग ठीक हो जाता हैं, यहाँ एक बार आने से नि:शंतान लोगों को बच्चें की प्राप्ति होती है. अपने साथ ऐतिहासिक धरोहर को समेटे हुए यह प्राचीन कुआं आज भी लोगों के आस्थाओं और मान्यताओं का भव्य केंद्र है.
रंग बदलता है यहाँ का पानी: जी हाँ, यहाँ का पानी 7 रंगों में “बैनिया पिलाना”(बैंगनी) रंग के आधार पे बदलते रहता है.इस रहस्य का कारण आज तक मालूम नहीं चल पाया हैं, इस कुएं की ख़ासियत यह है कि भले ही कितना भयंकर सूखा क्यों ना पड़ जाए यह कुआं सूखता नहीं वहीं दूसरी तरफ बाढ़ क्यों ना आ जाए इस कुएं के जलस्तर में कोई खास वृद्धि नहीं होती हैं. इस ऐतिहासिक कुएं का जलस्तर गर्मियों में अपने सामान्य जलस्तर से सिर्फ 1-1.5 फीट नीचें जाता है वहीं बारिश के दिनों में जलस्तर सामान्य से केवल 1 फीट तक ही ऊपर जाता है.
यहाँ प्रांगण में स्थित माँ शीतला का भव्य मंदिर है, मंदिर के पंडित पंकज पुजारी मालाकार ने बताया कि करीब 1909 में जब इस कुएँ की उराही तत्कालीन कलेक्टर J.S. leva की अध्यक्षता में करवाया गया तो इस कुएँ का पानी ख़त्म ही नहीं हुआ, मतलब पानी का लेवल बरक़रार रहा, इसलिए इसका नाम आदम कुआँ से बदल कर “अगम(अपार) कुआँ” रख दिया गया जिसका अर्थ पाताल से जुड़ा हुआ है.
करीब 1996 में भी तत्कालीन सीएम लालू यादव में भी उरही करवाया था और हुआ वही जो पहले हुआ था यानि पानी का लेवल कम नहीं हुआ. पुरात्वातिक सर्वेक्षण के द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार कुआं की गहराई 150 फीट है जो उस समय के लिए बड़ी बात थीं क्योकिं उस समय पानी 20 फीट की गहराई पर ही मिल जाता था.
अगम कुएं के बिलकुल पास ही शीतला माता का मंदिर स्थित हैं.मंदिर के पुजारी ने बताया की यहाँ रोज मुंडन छेका, तथा कई तरह के मांगलिक अनुष्टान,बड़ी संख्या में होते है.पहले यहां शादीयाँ भी होती थी लेकिन 12 वर्ष पहले स्थान की कमी को देखतें हुए मंदिर कमेटी ने मंदिर प्रांगण में शादी उत्सव बंद कर दी. यहाँ और भी बहुत से देवी-देवताओं के मंदिर है. लोग इस कुएं को गंगा से जुड़ा हुआ मानते हैं इसलिए मां गंगा की तरह पहले कुएं की पूजा की जाती है फिर अन्य देवी-देवताओं की पूजा होती है.
कुएं में लोग अपनी आस्था के अनुसार चोना-चांदी, पैसे आदि अर्पित किया करते हैं.पुरे मंदिर प्रांगण का हर कार्य कुआं के पानी से ही किया जाता हैं और रोज़ाना यहां अनेकों भक्त कुएं की पूजा करने आते है.लोगों द्वारा कुएं में चढ़ावा भी चढ़ाया जाता है. हालांकि इसे रोकने के लिए अब कुएं के चारों ओर जालियां भी लगा दी गई हैं.यहाँ साल में 3 बार चैत्र,आषड़, तथा कार्तिक के अष्टमी तिथि को यहाँ मेला लगता है.
साथ स्थानीय कुछ बुजुर्ग लोगों ने बताया की यह जमींन 100 साल पहले तक एक जमींदार का हुआ करता था , उसकी मंशा यहाँ घर बनाने की थी , पर शीतला माता ने उसके स्वपन में आ कर इस जमीन पर घर नहीं बनाने का आदेश दिया तब उसने लोगों की सहायता से यहां मंदिर का निर्माण करवाया.
माना जाता है की यहाँ माता के आशीर्वाद से श्रद्धालुओं की तमाम मनोकामनाएं पूर्ण होती है. कोई भी शुभ काम करने से पहले लोग यहाँ आ कर माता का आशीर्वाद ज़रूर लेते है.असाढ़ और चैत के अष्टमी के दिन यहाँ विशेष पूजा होती हैं, माता के पूजा में वासी प्रसाद के रूप में पूरी,गुल्गुल्ला,कसार,चना,साग इत्यादि का भोग लगाया जाता है. श्रद्धालु रात में अपना पकवान बनाकर सुबह में माता को भोग लगाते है और मंदिर के प्रांगण में बैठ कर उसी भोजन को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते है.
इस कुएं से जुड़ी एक अन्य मान्यता यह है कि अशोक ने राजा बनने के लिए अपने 99 भाइयों की हत्या कर उनकी लाशें इस कुएं में डलवाई थी.सम्राट अशोक के समय आए चीनी यात्रियों ने भी, अपनी किताबों में इस कुएं का उल्लेख एक ऐसी जगह के रूप में किया है,जहाँ सम्राट अशोक अपने विरोधियों को मरवाकर उनकी लाशें डलवाता था.
मंदिर से बाहर चारों तरफ भारी अतिक्रमण फैला हुआ है सरकार और स्थानीय लोगों की उदासीनता के कारण बाहर सड़क पर बहुत कम जगह बची हुई है,चारों तरफ बहुत अतिक्रमण तथा गन्दगी का साम्राज्य फ़ैला हुआ है.जगह-जगह दुकान है तथा पास ही में टेम्पो स्टैंड भी है.यहां रोज हजारों श्रद्धालु आते हैं लेकिन सुरक्षा के नाम पर कोई पुलिस वाला नज़र नहीं आया.