बिहार अपडेट-दिल्ली, अदबी कॉकटेल के मंच पर जब डॉ. सुरेन्द्र सिंह से जब साहित्यकार-पत्रकार रवि पाराशर ने पूछा कि शायर मुनव्वर राणा ने धार्मिक आधार पर हिंसा को जायज ठहराते हुए ब्यान दिया है, क्या इंसानियत से नीचे उतर कर किसी शायर को, साहित्यकार को इस तरह की बात करनी चाहिए? प्रश्न के उत्तर में डॉ. सिंहल ने कहा मुनव्वर राणा शायर हैं ही नहीं- उन्होंने कहा शहीदे-आज़म भगत सिंह ने कहा था कि क्रांति ईश्वर और धर्म विरोधी तो हो सकती है, मनुष्य विरोधी नहीं होगी। यही बात शायरी के लिए भी है, शायरी ईश्वर और धर्म विरोधी तो हो सकती है, मनुष्य विरोधी नहीं होगी। मुनव्वर राणा शायर है ही नहीं, वो मौलवी होने की कोशिश कर रहें हैं। उन्होंने पूछा कि मुसलमान हो या शायर हो? शायर मुसलमान या हिंदू नहीं होता। डॉ. सिंघल ने कहा कि कविता को हमेशा मनुष्य की मुक्ति की बात करनी चाहिए। उन्होंने अपना एक शेर पढ़ा- तुम आसमान से उतरी किताब में हो क़ैद, मुझे ज़मीन से उगते विचार पढ़ने हैं।
अदबी कॉकटेल की इस महफिल में उनके साथ बातचीत कर रहे थे वरिष्ठ पत्रकार-साहित्यकार रवि पाराशर। डॉ. सिंघल ने अपनी रचनाओं से तमाम श्रोताओं का दिल जीत लिया।
मैं उनके साथ रहा, दर्द बांटने के लिए। वो मेरे साथ रहे, वक्त काटने के लिए।।
कर ही बैठा तो अब तू, इसकी सारी सर्दी-गर्मी सारी झेल। मैं तो पहले ही कहता था, इश्क नहीं बच्चों का खेल।।