भाई आशीष तिवारी के ट्वीट से पता चला कि अभिनेता जगदीप नहीं रहे। पढ़ते ही उनका हंसता मुस्कुराता चेहरा सामने आ गया। वक्त सिनेमा के फ्लैशबैक की तरह बीस साल पीछे चला गया। आपसे पहली मुलाकात अदबी कॉकटेल के लिए हुई थी।
जगदीप साहेब मेरी यादों में सूरमा भोपाली के रूप में बसे हुए थे। मेरी धर्मपत्नी भोपाल की हैं और इस वजह से हम उन्हे सूरमा भोपाली भी कहा करते थे। जगदीप की अभिनय यात्रा बाल भूमिकाओं से शुरू हो गयी थी। जीवन संघर्षों से भरा हुआ रहा। उन्होंने बचपन से लेकर आज तक अनेकों यादगार भूमिकाये निभायी थीं लेकिन शोले के सूरमा भोपाली ने उन्हे बॉलीवुड में अमर कर दिया है। जगदीप पर्दे पर जितने हंसाते है पर्दे के बाहर भी बहुत खुशमिजाज़ थे। मेरी उनसे पहली मुलाकात हमारे शो अदबी कॉकटेल के लिए हुई थी। हम चाहते थे कि वो इस शो में आयें और अपने अनुभवों को सबके साथ बांटे। हमारे प्रॉडक्शन हेड विवेक ने उनके साथ मुलाकात तय की थी। मैने उनसे पूछा कि भाई कैसे आदमी हैं ये, तो उसने बताया आदमी कमाल के हैं… हर समय हंसने हंसाने वाले।
मैं और नाजिम तय समय पर मिलने जगदीप साहेब से मिलने पहुंचे। बिल्डिंग के सिक्योरिटी गार्ड ने हमें लॉन में पडी कुर्सियो पर बैठा दिया और हम लगे जगदीप साहेब का इंतज़ार करने में… पांच मिनट ही बीते होंगे के झिलमिल चमचमाती हुई कमीज़ पहने जगदीप साहेब हाजिर हो गए। मेरी स्क्रीन की यादों से निकल कर सूरमा भोपाली मेरी आंखो के सामने हाज़िर था।
जगदीप साहेब ने शो का कांसेप्ट सुना… सुनकर बहुत खुश हुए। खास तौर से उन्हे ये बात बेहद पसंद आयी कि ये शो उर्दू में है। निदा फाज़ली इसे लिख रहे हैं और टॉम आल्टर इसे एंकर कर रहे है। वो तुरंत इसमें आने के लिए तैयार हो गये।
जगदीप जी के साथ बातों का सिलसिला जो शुरू हुआ तो बस…खत्म होने का नाम ही न ले। फिल्म इंडस्ट्री का एनसाइक्लोपीडिया थे जगदीप साहब। यादों का न खत्म होने वाला खजाना था उनके पास एक से एक दिलचस्प किस्से भरे पड़े थे उनके खजाने में। ऐसा ही एक किस्सा उन्होने हमें महबूब साहेब के बारे में सुनाया। जगदीप साहेब ने कहा महबूब साहेब बड़े दिल वाले आदमी थे, लेकिन कई बार जब किसी बात पर वो किसी से उखड़ जाते थे तो फिर उन्हे मनाना मुश्किल हो जाता था। एक बार वो किसी बात पर जगदीप से उखड़ गए। जगदीप जी ने कुछ काम उनके साथ किया था जिसकी पेमेंट उन्हे नही मिली थी। जगदीप जी उनके प्रोडक्शन के चक्कर काटते लेकिन पैसे नही मिलते, वो महबूब साहेब से मिलना चाहते लेकिन वो भी उनसे नही मिलते…जगदीप बोले उन दिनो हमारी हालत कुछ अच्छी नही थी…इसलिए पैसों की सख्त ज़रूरत थी। एक दिन वो महबूब साहेब के ऑफिस पहुंचे तो इत्तेफाक से उनकी मुलाकात उनसे हो गयी। जगदीप ने उनसे पैसे मांगे, महबूब साहेब ने कहा अगर वो उनके पैसे न दें तो… जगदीप बोले…मुद्दई लाख बुरा चाहे तो क्या होता है, वही होता है जो मंज़ूरे ख़ुदा होता है…और कह कर वो वहां से जाने लगे। महबूब साहेब ने उनका हाथ पकड़ लिया और अपनी मेज की दराज खोली और उसमें रखे पैसे निकाल कर जगदीप को दे दिये और कहा मैं ये बात भूल गया था कि खुदा से बड़ा कोई नही होता। दरअसल ये लाइने महबूब प्रडक्शन की पहचान थीं, उनकी हर फिल्म के शुरू होने से पहले ये लाइने बोली जाती थीं।
खैर उनकी यादों के सफर से हम किसी तरह निकले… जगदीप साहेब तय समय पर स्टूडियो पंहुचे। टॉम के साथ उन्होने सेट पर खूब मस्ती की और हर बात के लिए बोलते ‘उर्दू’…टॉम कुछ भी पूछते…वो बोलते ‘उर्दू’। जगदीप साहेब के साथ एपिसोड शूट कर के बहुत मजा आया। शूटिंग के बाद जब हम उन्हे छोड़ने गाड़ी तक गए तो वो गाड़ी में बैठ गए लेकिन मेरा हाथ नही छोड़ा। गाड़ी स्टार्ट थी लेकिन ड्राइवर क्या करे, जगदीप साहेब हाथ छोड़े तो गाड़ी बढ़े…2-3 मिनट यूं ही निकल गए और जगदीप साहेब ने देखा कि मैं कुछ ध्यान नही दे रहा हूं तो वो मुझसे बोले अतुल भाई आप कुछ भूल तो नही रहे हैं, मैने कहा नही तो…जगदीप बोले भाई आप अपने यहां आने वाले को कुछ नजराना नही देते…मुझे ध्यान आया कि हमने जगदीप साहेब को कुछ दिया ही नही है, मैने तुरंत विवेक को बुलवाया और जगदीप साहेब के लिए खासतौर से मंगवाई सोने की गिन्नी उन्हे भेंट की। जगदीप साहेब बहुत खुश हुए और घर को रवाना हो गये।
इसके बाद हमने उर्दू बाज़ार के लिए भी जगदीप साहब को सेट पर बुलाया। इस शो को निदा फाज़ली साहब ने लिखा और एंकर किया था।
जगदीप साहब उर्फ सैय्यद इश्तियाक अहमद जाफरी ने 81 वर्ष की आयु में इस दुनिया को अलविदा कह दिया है। लेकिन आप अपने किरदारों में हमेशा जीवित रहेंगे। ईश्वर आपकी आत्मा को शांति दे, वहां भी आप हंसते हंसाते रहें।