आम आदमी पार्टी बनने जा रही है खास-संजय स्वामी

2011में अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से उपजी आम आदमी पार्टी 26 नवंबर संविधान दिवस के दिन 2012 में आम आदमी पार्टी के नाम से राजनीतिक दल के रूप में अस्तित्व में आई।बहुत तेजी आगे बढ़ते हुए पहली बार ही चुनाव में उतरी आम आदमी पार्टी ने दिल्ली विधानसभा की 70 में से 28 सीटें जीती और 3 बार से दिल्ली की सत्ता पर कायम कांग्रेस को एक ही झटके में हाशिए पर ला दिया। जिसके मात्र 8 विधायक दिल्ली विधानसभा पहुंचे। चुनाव में पूर्ण बहुमत तो प्राप्त नहीं हुआ। परंतु 28 दिसंबर 2013 को

अप्रत्याशित रूप से कांग्रेस के समर्थन से ही अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी की दिल्ली में सरकार बनी।केजरीवाल मुख्यमंत्री बने झटके खाती नाव कुछ दूर तक धरने प्रदर्शन करती आम जन के बीच अपनी पकड़ बनाती चली परंतु बीच में गाड़ी अटक गई। पुनः चुनाव हुए और आम आदमी की ताकत से सारे रिकॉर्ड तोड़ 70 में से 67 विधानसभा सीटें जीत कर आम आदमी पार्टी की सरकार बनी।

वादे तो बहुत किए थे कुछ हुए कुछ पराली के धुएं में उड़ गए। परंतु लोक लुभावने नारों के जादू के कारण से केजरीवाल तीसरी बार फिर 2020 में मुख्यमंत्री बने। कुछ सीटें कम हुई परंतु पूर्ण बहुमत की दो तिहाई से अधिक विधायको की ताकत से सरकार बनी। जोश कई गुना बढ़ गया कुछ अनुभव भी हो गया। पार्टी आगे बढ़ी पंजाब में चुनाव हुए वहां भी पूर्ण बहुमत की दो तिहाई बहुमत से अधिक सीटें जीतकर सरकार बनाई। जोश बढ़ता गया धीरे-धीरे कार्य आगे बढ़ता गया। कार्यकर्ताओं, का नेताओं का अनुभव बढ़ता गया।

प्रथम बार दिल्ली का मुख्य मंत्री बनते ही केजरीवाल ने ऊंची छलांग लगाकर एक बार में ही चांद को पकड़ने का ख्वाब पाल लिया था। दिल्ली की मुख्यमंत्री रही शीला दीक्षित को पटखनी देने के बाद केजरीवाल के हौंसले व ख्वाब इस कदर आसमान पर थे कि 2014 में ही राष्ट्रीय स्तर पर लोकसभा के चुनाव में सीधे नरेंद्र मोदी को चुनौती देते हुए वाराणसी जा ताल ठोकी। पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ी आ आ पा का रायता फैल गया। पार्टी धड़ाम से औंधे मुंह गिरी मात्र एक सांसद भगवंत मान लोकसभा पहुंच सके।

आम आदमी पार्टी ने अब समझदारी व परिपक्वता दिखाते हुए पूरे देश में चुनाव न लड़, छोटे-छोटे परंतु महत्वपूर्ण राज्यों की ओर बढ़ना शुरू किया। हां फ्री की रेवड़ियां बांटने का सफल नुस्खा स्वयं भी आगे बढ़ा रहे हैं और अन्य दलों को भी प्रेरित कर रहे हैं। इस इक्कीसवीं सदी के महान आविष्कार फ्री बिजली, पानी की बरसात से फिर 2022 नवंबर-दिसंबर के हिमाचल, गुजरात के विधानसभा तथा दिल्ली के नगर निगम चुनाव में पूरे जोर से धमाल मचाने का प्रयास किया है। कल चुनाव के परिणाम कुछ भी हो परंतु यह निश्चित है कि आआ पा का मकसद पूरा होने जा रहा है। आपा ने जो लक्ष्य साधा था उसके भेदन में यह तेजी से उभरता दल अर्थात आम आदमी पार्टी अब क्षेत्रीय दल से राष्ट्रीय दल बनने की ओर अग्रसर है। इसके राजसूय यज्ञ को रोकना अब कांग्रेस, साम्यवादी तो क्या भारतीय जनता पार्टी के लिए भी संभव नहीं लग रहा।

राजनीतिक क्षेत्र में सक्रीय लोग तथा राजनीति विज्ञान के विद्यार्थी जानते हैं कि भारत का चुनाव आयोग राजनीतिक दलों को मान्यता देता है। वही निर्धारित करता है कि कौन सा दल क्षेत्रीय दल या राष्ट्रीय दल के रूप में गौरव पाएगा। सनद रहे राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता हेतु किसी एक दल को या तो लोकसभा की कुल सदस्यता का 2% सदस्य लोकसभा में चुनाव जीत कर आए या किन्हीं चार राज्यों में विधानसभा अथवा लोकसभा चुनाव में 6% मत प्राप्त हों साथ ही लोकसभा में न्यूनतम चार सांसद दल की आवाज बुलंद करने वाले हों।

वर्तमान समय में भारतीय राजनीति के क्षितिज में लगभग 2700 दल टिमटिमा रहे हैं। जिनमे आठ दल राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त हैं तथा 54 राज्यस्तरीय या क्षेत्रीय दल के रूप में मान्यता रखते हैं। अनगिनत दलों की दलदल में आम आदमी समझ ही नही पाता कि कौन सा दल मान्यता प्राप्त है और कौन सा गैर मान्यता वाला।

निर्वाचन आयोग ही मान्यता प्राप्त दलों को चुनाव चिन्ह प्रदान करता है। राष्ट्रीय अथवा राज्य स्तर पर धमक दिखाने वाले अधिकांश दल उनके चुनाव चिन्ह से ही सामान्य जन में पहचाने जाते हैं। इसलिए भारत में चुनाव आयोग ने प्रथम चुनाव 1951-52 से ही चुनाव चिन्ह की व्यवस्था की है। आज भी लाखों करोड़ों मतदाता राजनीति दलों व उनके नेताओं को चुनाव चिन्ह से ही पहचानते हैं।

वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य पर सूक्ष्म दृष्टि डालें और भविष्य का आंकलन करें तो केजरीवाल तथा उनकी पूरी टीम का जोर अब इस बात पर है कि भारतीय जनता पार्टी तथा नरेंद्र मोदी का विकल्प देश की जनता अब उनकी पार्टी में तलाशे। कांग्रेस के ढहते किलों, उजड़ते खंडहरों के ऊपर आम आदमी पार्टी दबे कदमों से शनै शनै अपना महल खड़ा करने के लिए जी जान से जुटी हुई है।वर्तमान के इन 2022 के तीन राज्यों के चुनाव परिणाम पर ही कांग्रेस के युवराज के अस्तित्व और आम आदमी पार्टी के भविष्य की गूंज सुनाई देगी। आइए देखते हैं राजनीति और सियासत का यह दौर देश को किस ओर ले कर जायेगा।

_ संजय स्वामी

प्रवक्ता राजनीति विज्ञान

 

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