रवि पाराशर
(341, सैक्टर 4 सी, वार्तालोक अपार्टमेंट, वसुंधरा, ग़ाज़ियाबाद- 201012)
हाल ही में कुछ मीडिया रिपोर्टों में इस तथ्य की धमाकेदार पुष्टि हुई है कि कश्मीर में पाकिस्तान सरकार और वहां के आतंकी संगठनों की मदद हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के अलगाववादी नेता ले रहे हैं। वहां से आ रहे अरबों रुपए घाटी में उपद्रव और अशांति के लिए ख़र्च किए जा रहे हैं। हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के सैयद अली शाह गीलानी गुट के ओहदेदार नईम ख़ान को इंडिया टुडे चैनल पर यह कहते हुए साफ़-साफ़ सुना गया है कि पाकिस्तान कश्मीर में अशांति फैलाने के लिए सैकड़ों करोड़ रुपए भेज रहा है।
हुर्रियत की फ़ीस है तीन महीने के लिए चार से पांच सौ करोड़ रुपए। एक सवाल के जवाब में नईम को कहते सुना जा सकता है कि पाकिस्तान अक्सर क्वार्टरली यानी चार महीने के लिए फंड भेजता है और कभी ये मियाद छिमाही भी होती है। वह यह भी बता रहा है कि पैसा कई मुस्लिम देशों से दिल्ली में उनके एजेंटों के पास हवाला के ज़रिए आता है और वहां से कश्मीर। नईम ने चौंकाने वाला ख़ुलासा यह किया है कि हवाला के ज़रिए रक़म दिल्ली के बल्लीमारान और चांदनी चौक जैसे इलाक़ों में आती है। नईम ख़ान कह रहा है कि बुरहान वानी के मारे जाने के बाद घाटी में अशांति फैलाने के लिए हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के सहयोग से ही 31 स्कूलों और 110 सरकारी इमारतों को आग के हवाले किया गया।
नईम मान रहा है कि सैयद अली शाह गीलानी के सीधे रिश्ते पाकिस्तान में रह रहे आतंकी सरगना भारत के मोस्ट वांटेड हाफ़िज़ सईद से हैं और वो भी करोड़ों रुपए भेजता है। इसके लिए वह इस्लाम के नाम पर पैसा जुटाता है। नईम बता रहा है कि पाकिस्तान से आने वाला पैसा गीलानी, मीरवाइज़ और यासीन मलिक के पास जाता है। फिर वे उसे अपने लोगों में बांटते हैं। जेकेएलफ़ के फ़ारूक़ अहमद डार उर्फ़ बिट्टा कराटे का भी स्टिंग ऑपरेशन किया गया है, जिसमें चौंकाने वाला रहस्योद्घाटन है कि देश के कुछ कॉरपोरेट लॉबीइस्ट भी जम्मू-कश्मीर सरकार को अस्थिर करने के लिए अलगाववादियों की मदद करते हैं। स्टिंग ऑपरेशन में डार कह है कि 70 करोड़ रुपए मिल जाएं, तो घाटी के हालात में लगातार छह महीने तक उबाल आता रहेगा। गीलानी की पार्टी तहरीक-ए-हुर्रियत जम्मू-कश्मीर का नेता ग़ाज़ी जावेद बाबा भी पैसों के ज़रिए घाटी में अशांति का खेल खेले जाने की बात कह रहा है।
एक और अंग्रेज़ी न्यूज़ चैनल टाइम्स नाउ ने छह अप्रैल को बाक़ायदा दस्तावेज़ के आधार पर जानकारी दी कि पाकिस्तान की ख़ुफ़िया एजेंसी आईएसआई हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के नेताओं को पैसे भेजने के लिए दिल्ली में अपने उच्चायुक्त अब्दुल बासित का इस्तेमाल कर रही है। रिपोर्ट में बताया गया है कि हाल ही में पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता शब्बीर अहमद शाह को आईएसआई एजेंट अहमद सागर के ज़रिए 70 लाख रुपए मिले। सागर पाकिस्तान के उच्चायुक्त बासित का क़रीबी बताया गया है। शब्बीर शाह को मिली रक़म का इस्तेमाल शोपियां, बारामूला, कुपवाड़ा, अनंतनाग और पुलवामा ज़िलों में हिंसा भड़काने के लिए किया गया। हाल ही में पकड़े गए दो आईएसआई एजेंटों ने भी पूछताछ में कुबूल किया है कि उन्हें बासित से नियमित पैसे मिलते थे।
भारतीय टीवी चैनलों के स्टिंग ऑपरेशन और इन्वेस्टीगेशन के नतीजों हुर्रियत चेयरमैन सैयद अली शाह गीलानी, दूसरे नेता मीरवाइज़ उमर फ़ारूक़ और यासीन मलिक पल्ला झाड़ सकते हैं। वे दलील दे सकते हैं कि उनके कथित साथी अपने निजी फ़ायदों के लिए झूठ बोल रहे हैं या फिर कह सकते हैं कि आवाज़ें उनकी नहीं है, वीडियो तोड़-मरोड़ कर पेश किए गए हैं। लेकिन पिछले साल जुलाई के बाद घाटी में और कश्मीर के ग्रामीण इलाक़ों में पांच-छह महीने तक जो पसमंज़र देखे गए, उनसे साफ़ हो जाता है कि स्टिंग ऑपरेशन में फंसे हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के सिपहसालार बड़े नेता ग़लतबयानी नहीं कर रहे हैं। वे अगर कह रहे हैं कि अगर पैसे मिल जाएं, तो वे ऐसे हालात बना देंगे कि स्कूल और बाज़ार नहीं खुलें, ट्रांसपोर्ट व्यवस्था ठप्प हो जाए। आपको याद होगा कि लगातार बंद और हड़ताल से तंग आकर जो रेहड़ी-पटरी वाले हुर्रियत के कैलेंडर के ख़िलाफ़ बाज़ार पहुंचने लगे, उनसे मारपीट की गई और पेट्रोल बमों तक से हमले किए गए। ऑटो-टैक्सी चलाने वालों के वाहन आग के हवाले कर दिए गए। यानी उन्हें डरा-धमका कर कथित आंदोलन में शामिल करार दिया गया। तंग आकर छोटे-मंझोले कारोबारियों ने दबी ज़ुबान से ही सही, विरोध जताना शुरू किया, तो हड़ताल के कैलेंडरों के दिन लगातार कम कर दिए गए। हुर्रियत को लगा कि अब हालात बेक़ाबू हो सकते हैं, तो उन्होंने आम हड़ताल केवल प्रतीकात्मक तौर तक ही सीमित करने में भलाई समझी।
उपरोक्त स्टिंग ऑपरेशनों से एक बात और साबित होती है कि देश में नोटबंदी के ऐलान के बाद कश्मीर में पत्थरबाज़ी में आई कमी की वजह भारतीय करेंसी की कमी ही थी। हुर्रियत कॉन्फ्रेंस को एकदम न तो नई करेंसी भारतीय कॉरपोरेट लॉबीइस्ट मुहैया करा सकते थे और न ही पाकिस्तान सरकार और वहां के आतंकी संगठन। अब नई करेंसी अच्छी संख्या में बाज़ार में है, लिहाज़ा घाटी में पाकिस्तान के पेरोल पर चल रही हुर्रियत कॉन्फ्रेंस की मेहरबानी से पत्थरबाज़ी दोबारा शुरू हो गई है। हालांकि पिछले साल जुलाई से नवंबर के बीच वाले हालात अभी नहीं हैं। इसकी एक बड़ी वजह घाटी में तैनात सुरक्षा बलों की नई रणनीति भी है। वर्ष 2000 के बाद बड़े पैमाने पर चलाए जाने वाले तलाशी अभियान दोबारा सुनियोजित तरीक़े से शुरू कर दिए गए हैं। दरअस्ल, इलाक़े को घेरकर चलाए जाने वाले तलाशी अभियानों के दौरान घेरे के अंदर के लोग बाहर नहीं जा सकते थे और बाहर के लोग अंदर नहीं आ सकते थे। अभियान में घंटों लगते थे, इस वजह से कश्मीरियों की शिकायत थी कि उन्हें बहुत असुविधा होती है। इस वजह से 17-18 साल पहले नियमित तलाशी मुहिमों को एक तरह से ख़त्म कर दिया गया।
घाटी में सक्रिय क़रीब 110 स्थानीय हथियारबंद आतंकियों के ख़िलाफ़ अब घेराबंदी कसी जा रही है। इस वजह से वे बौखलाए हुए हैं। दूसरे नोटबंदी के बाद बदले माहौल में उनके पास पर्याप्त पैसा और हथियार नहीं हैं, इससे भी वे बिदके हुए हैं। आंकड़ों के मुताबिक कश्मीर में बैंक लूट और चोरियों की 13 वारदात हुई हैं। नौ बैंक शाखाओं में लूट की कोशिशें नाकम कर दी गईं। ये वारदात पिछले साल आठ नवंबर को नोटबंदी के ऐलान के बाद दक्षिण कश्मीर में हुईं। जम्मू एंड कश्मीर बैंक को ही सबसे ज़्यादा निशाना बनाया गया, क्योंकि कश्मीर में इसकी ही सबसे ज़्यादा ब्रांच हैं। पिछले साल 21 नवंबर से इस साल 3 मई तक बैंकों से कुल 90 लाख, 87 हजार रुपए की लूट हुई। लूट की ऐसी ही एक वारदात पिछले 28 अप्रैल को अनंतनाग क़स्बे में हुई थी, जिसके दौरान एक स्थानीय युवक को गिरफ्तार कर लिया गया था। उसने बयान दिया था कि उसके ज़िम्मे सुरक्षा में तैनात सीआरपीएफ़ के जवान की राइफ़ल छीनना था। जम्मू-कश्मीर पुलिस समते सुरक्षा बलों के जवानों से अभी तक 35 से ज़्यादा हथियार छीने जाने की वारदात हुई हैं।
ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि मुंबई हमले का मास्टरमाइंड जमात-उद-दावा चीफ़ हाफ़िज़ सईद हुर्रियत के अलगाववादियों को अथाह पैसे भेज रहा है, पाकिस्तान सरकार और वहां स्थित दूसरी आतंकी जमातों के साथ-साथ पाकिस्तान या कहें कि आतंक समर्थक देशों की तरफ़ से भी अकूत दौलत कश्मीर भेजी जा रही है, तो फिर कश्मीर में सक्रिय स्थानीय या विदेशी आतंकियों को पैसे की क़िल्लत क्यों हो रही है? या फिर दूसरे शब्दों में ये भी कह सकते हैं कि पैसे की इतनी ज़रूरत उन्हें क्यों पड़ रही है कि बैंक शाखाओं से छोटी-छोटी रक़म लूटने का जोख़िम भीड़-भाड़ वाले इलाक़ों में सुरक्षा बलों की तैनाती के बीच भी मोल लेना पड़ रहा है? सवाल यह भी है कि बैंक और हथियारों की लूट करने वाले कहीं अपराधी गैंगों के शातिर तो नहीं हैं, जिन्हें बहला-फुसला कर, लालच देकर आतंकी सरगनाओं ने इस काम में लगा दिया है? शायद कश्मीर के इस्लामीकरण या कश्मीर की आज़ादी जैसी नाजायज़ कोशिशों से उनका कोई सरोकार किसी भी स्तर पर नहीं हो।
अलगाववादी नेताओं को अरबों रुपए मिलने की ख़बर से घाटी में सक्रिय हिज़्ब और लश्कर के आतंकी अनजान नहीं हो सकते। कहीं ऐसा तो नहीं है कि कश्मीर को इस्लामी देश बनाने की कट्टर हिमायत के पीछे और कश्मीर को सियासी समस्या करार देने पर हुर्रियत नेताओं के सिर काटकर लाल चौक पर लटकाने की धमकी की जड़ में पैसा ही ठोस भूमिका अदा कर रहा हो। बुरहान वानी के बाद कश्मीर में कमान संभालने वाले ज़ाकिर मूसा के बयान के बाद हिज़्ब के उससे किनारा कर लिया, तो उसने संगठन से ख़ुद को अलग करने में देर नहीं लगाई (अक्सर ऐसी ख़बरों की आधिकारिक पुष्टि नहीं होती)। ऐसा हरगिज़ नहीं होगा कि मूसा को यह पता न हो कि उसके रुख़ के बाद पीओजेके स्थित हिज़्ब-उल-मुजाहिदीन का चीफ़ सरगना सैयद सलाहुद्दीन बेचैन हो जाएगा। ऐसा भी हरगिज़ नहीं होगा कि मूसा को यह याद नहीं हो कि वर्ष 2002 जब घाटी में तत्कालीन हिज़्ब कमांडर अब्दुल मजीद डार ने सलाहुद्दीन का आदेश मानने से इनकार किया था, तो उसका क्या हश्र हुआ था? हिज़्ब के आतंकियों ने ही डार की हत्या कर दी थी। फिर भी मूसा ने अगर ऐसी हिमाक़त की है, तो साफ़ है कि उसे स्थानीय स्तर पर अपने गुट का समर्थन हासिल होगा।
सही बात तो यही है कि ऑल पार्टी हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के चेयरमैन सैयद अली शाह गीलानी की पार्टी तहरीक़-ए-हुर्रियत जम्मू-कश्मीरा का एजेंडा भी इस्लाम और क़ुरआन के हिसाब से ही है, लेकिन अगर वे ज़ाकिर मूसा की तरह सीधे-सीधे ऐसा बोलने लगें, तो फिर अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी और बहुत से मुस्लिम देशों की नज़र में कश्मीर मसले का स्वरूप ही बदल जाएगा। ऐसा हुआ, तो हुर्रियत के तथाकथित आंदोलन की हवा निकल जाएगी। ऐसा हुआ, तो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सुर बदल जाएंगे। वैसे तो संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर नाम की कोई समस्या या झगड़ा आधिकारिक तौर पर लंबित है ही नहीं, फिर भी पाकिस्तान गाहे-ब-गाहे वहां कश्मीर राग अलापता रहता है। ऐसे में उसे यह रागगीरी बंद करनी पड़ेगी।
हुर्रियत कॉन्फ्रेंस की कुटिलता की पर्तें उधड़ रही हैं। हाल ही में भारतीय फ़ौज के लेफ़्टिनेंट उमर फ़ैयाज़ की हत्या के मामले में और इससे पहले भी जम्मू-कश्मीर पुलिस के जवानों और बैंककर्मियों की हत्या को लेकर हुर्रियत नेताओं ने शोक का एक शब्द भी नहीं कहा। आतंकियों की आलोचना नहीं की, जबकि घाटी में ऐसी वारदात से शोक की लहर दौड़ जाती है। ग़मग़ीन लोग बड़ी संख्या में सिपाहियों के जनाज़ों में भी शिरक़त करते हैं। इससे लोगों में यही संदेश जा रहा है कि हुर्रियत कॉन्फ्रेंस आतंकियों की ही हिमायती है। जबकि अब यह भी खुलकर सामने आ गया है कि पैसों की बंदरबांट को लेकर हुर्रियत के अंदर और आतंकियों के साथ भी उसकी ठनती जा रही है। बहरहाल, जो भी हो, कश्मीर में सक्रिय आतंकवादियों और अलगाववादियों के बीच अगर किसी भी मामले को लेकर दरार चौड़ी होती जा रही है, तो यह कूटनैतिक और रणनैतिक नज़रिए से भारत के लिए अच्छी बात है।