बिना तथ्यों की पड़ताल किए होने लगीं ‘बीफ पार्टियां’
– अरुण आनंद
मांस के लिए मवेशियों के व्यापार पर प्रतिबंध लगाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा जारी एक अधिसूचना को लेकर हाल ही में विवाद पैदा हो गया है। कुछ जगह इसके विरोध में बीफ पार्टियों का भी आयोजन किया गया। विपक्ष ने भी इस अधिसूचना का विरोध किया। मद्रास हाईकोर्ट ने इस पर कुछ दिन के लिए स्टे भी लगा दिया है।
वास्तव में यह अधिसूचना मवेशियों की तस्करी को रोकने की मंशा से की गई थी। मवेशियों की तस्करी का एक पूरा उद्योग है जिसने देशभर में पांव पसार रखे हैं और बड़ी तेजी से फैल रहा है। लाखों की संख्या में मवेशियों को तस्करों द्वारा सीमा पार कर बांग्लादेश ले जाया जाता है जहां उनका अंत बूचड़खानों में होता है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय की स्थाई संसदीय समिति ने अप्रैल 2017 में अंतरराष्ट्रीय सीमा से संबंधित जो रिपोर्ट संसद में पेश की उसमें इस समस्या के बारे में विस्तार से चर्चा की है और चिंता भी जाहिर की गई है। समिति ने सरकार को सिफारिश की है कि तस्करी के इस पूरे तंत्र पर कुठाराघात करने के लिए सरकार को कड़े और व्यापक कदम उठाने की जरूरत है। इस संदर्भ में केंद्र सरकार द्वारा जारी अधिसूचना को देखा जाए तो इस कदम की प्रासंगिकता स्पष्ट होती है। दिलचस्प बात यह है कि इस समिति का अध्यक्ष कोई और नहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम हैं। यह बात दीगर है कि उनकी अपनी पार्टी भी इस अधिसूचना का विरोध कर रही है।
मवेशियों की तस्करी से जुड़े तथ्यों पर नज़र डालें तो उनके संदर्भ में इस विवाद को समझने का प्रयास करें। स्थायी समिति ने अपनी ताजा रिपोर्ट में केंद्रीय गृह मंत्रालय से प्राप्त जानकारी का उल्लेख करते हुए कहा है कि इस तस्करी को बढ़ावा देने में तीन महत्वपूर्ण कारक हैं—
1. बांग्लादेश के साथ लगी अंतरराष्ट्रीय सीमा के निकट 300 गांवों की मौजूदगी और सघन जनसंख्या वाले इलाके।
2. सीमा सुरक्षा बल यानी कि बीएसएफ द्वारा जिन मवेशियों को जब्त कर लिया जाता है उनकी नीलामी की जाती है लेकिन नीलामी के तंत्र को इस तरह से नियंत्रित किया जा रहा है कि यह मवेशी फिर उन्हीं तस्करों के पास पहुंच जाते हैं।
3. सीमा के निकट कुछ स्थानीय लोग तस्करी के इस तंत्र में बड़ी मजबूती से स्थापित हैं और तस्करी में भागीदार हैं।
विडंबना यह है कि अभी तक अधिकृत तौर पर हमारे पास कोई ऐसा आंकड़ा सरकारी रिकॉर्ड में नहीं है जो तस्करी के शिकार कुल पशुओं की संख्या का अंदाजा दे सके लेकिन सीमा सुरक्षा बल के पास तस्करों से जब्त किए गए मवेशियों का आंकड़ा इस समस्या की विकरालता और गंभीरता की ओर इशारा करता है। वर्ष 2012 में 1,20,724 मवेशी जब्त हुए, 2013 में यह संख्या 1,22,000, 2014 में 1,09,999, 2015 में 1,53,602 और 2016 में अक्टूबर माह तक 1,46,967 मवेशी तस्करों के शिकंजे से छुड़ाए गए।
स्थाई समिति की रिपोर्ट के अनुसार इन तस्करों का जाल हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, झारखंड, बिहार और पश्चिम बंगाल तक फैला हुआ है। इन इलाकों से स्थानीय एजेंट इन पशुओं को अवैध ढंग से पश्चिम बंगाल तथा असम पहुंचाते हैं। रिपोर्ट के अनुसार असम में धुबरी तथा पश्चिम बंगाल में नादिया, मुर्शिदाबाद, मालदा, दक्षिण दिनाजपुर, उत्तर दिनाजपुर, रायगंज व सिलिगुड़ी इस तस्करी के मुख्य केंद्र हैं।
संसदीय समिति ने इस बात पर रोष जाहिर किया है कि पश्चिम बंगाल सरकार 1 सितंबर 2003 को अपने ही द्वारा जारी एक अधिसूचना का उल्लंघन कर रही है। इस अधिसूचना के अनुसार अंतरराष्ट्रीय सीमा के आठ किलोमीटर के दायरे में कोई पशु हाट नहीं होना चाहिए लेकिन स्वयं पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव ने इस समिति को बताया कि ऐसे 15 हाट चल रहे हैं जिसमें से मुर्शिदाबाद के हाट को ही अभी तक स्थानांतरित किया गया है। ऐसे में पश्चिम बंगाल की सरकार द्वारा केंद्र सरकार की इस अधिसूचना का विरोध इस बात का संकेत है कि न तो राज्य सरकार खुद कानून का पालन कर रही है और न यह चाहती है कि इस संबंध में कोई और काननू बने। इसका लाभ किसे मिलेगा, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं हैं।
बीएसएफ ने अपने आकलन में साफ कहा है कि हन हाटों की मौजूदगी पशुओं की तस्करी को बढ़ावा देती है क्योंकि हाटों तक मवेशियों आदि को ले जाने पर कोई अंकुश नहीं है। इसी की आड़ में खुलकर तस्करी हो रही है। ऐसे में क्यों राज्य सरकार इन हाटों को बंद नहीं कर रही है, इस सवाल को उठाया जाना चाहिए। जब राज्य सरकार खुद अपने ही नियमों का उल्लंघन करने लगेगी तो मवेशियों की तस्करी को कौन रोकेगा?
समिति ने इस बात की सिफारिश की है कि पश्चिम बंगाल सरकार को सीमा के निकट नियमों के विरुद्ध बने इन हाटों के लाइसेंस फौरन रद्द करने चाहिए। इस संबंध में राज्य सरकार की चुप्पी चिंताजनक है। समिति ने एक कदम और आगे जाकर सीमा के 15 किलोमीटर के दायरे में मौजूद सभी पशु हाटों को हटाने की सिफारिश की है। एक अन्य सिफारिश में समिति ने कहा है कि पश्चिम बंगाल सरकार को सीमा के निकट उन स्थानीय लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए जो इस तस्करी में लिप्त हैं या इसे बढ़ावा दे रहे हैं। समिति ने अपने निष्कर्ष में कहा कि तस्करी का यह तंत्र बड़ा व्यापक और मजबूत है और इसे तोड़ने के लिए इसके मूल में प्रहार करने की जरूरत है। संभवत: केंद्र सरकार की मंशा इसी प्रकार का प्रहार करने की थी लेकिन इस विवाद को राजनीतिक रंग देकर विपक्षी दलों ने एक महत्वपूर्ण और संवेदनशील मुद्दे को अपने तार्किक अंत तक पहुंचने से फिलहाल तो रोक दिया है। उस पर देश के कई हिस्सो में ‘बीफ’ पार्टियों का आयोजन इस बात का संकेत देता है कि किस तरह बिना तथ्यों की पड़ताल किए हमारे समाज का एक ‘एलीट’ वर्ग जो खुद को ‘उदारवादी’ कहता है निरीह पशुओं के जीवन के प्रति असंवेदनशील है और शायद उसे मवेशियों की तस्करी रोकने में कोई खास रुचि नहीं है।