“सरकारें आएंगी जाएंगी, पार्टियां बनेंगी बिगड़ेंगी मगर यह देश रहना चाहिए, इस देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए।”
यह अमर कथन भारत के पूर्व प्रधानमंत्री, प्रखर वक्ता, श्रेष्ठ कवि, और राष्ट्रनायक अटल बिहारी वाजपेयी जी का है।
25 दिसंबर 1924 को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में जन्मे वाजपेयी जी भारतीय राजनीति के वो सितारे थे, जिनकी चमक आज भी प्रेरणा देती है। उनके पिता कृष्ण बिहारी वाजपेयी, जो एक शिक्षक थे, और माता कृष्णा देवी ने उन्हें संस्कारों से परिपूर्ण किया। वाजपेयी जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा ग्वालियर के सरस्वती शिशु मंदिर में ली और आगे की पढ़ाई आगरा विश्वविद्यालय से की, जहां उन्होंने हिंदी, अंग्रेजी, और संस्कृत में स्नातक की उपाधि प्राप्त की।
राजनीतिक यात्रा
वाजपेयी जी की राजनीति में यात्रा 1951 में भारतीय जनसंघ से शुरू हुई। उनकी वाक्पटुता और नेतृत्व क्षमता ने उन्हें जल्द ही राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। 1957 में वे पहली बार लोकसभा के सदस्य बने। इसके बाद, उन्होंने 1968 में जनसंघ के अध्यक्ष के रूप में पार्टी को नई दिशा दी।
1980 में, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की स्थापना के बाद, वे इसके संस्थापक सदस्यों में से एक रहे। उनके कुशल नेतृत्व ने भाजपा को एक मजबूत राजनीतिक ताकत के रूप में स्थापित किया।
1996 में, वाजपेयी जी ने पहली बार प्रधानमंत्री का पद संभाला, हालांकि उनका कार्यकाल केवल 13 दिन तक चला। 1998 में वे फिर से प्रधानमंत्री बने, और इस बार उन्होंने 13 महीनों तक देश का नेतृत्व किया। 1999 से 2004 तक का उनका कार्यकाल उनके करियर का स्वर्णिम काल था।
प्रमुख उपलब्धियां
1. पोखरण-2 परमाणु परीक्षण (1998): वाजपेयी जी ने भारत को परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र बनाया, जिससे देश की रक्षा क्षमता में वृद्धि हुई।
2. लाहौर बस यात्रा (1999): पाकिस्तान के साथ शांति स्थापित करने का उनका प्रयास अद्वितीय था।
3. कारगिल युद्ध (1999): उन्होंने कुशल नेतृत्व से देश को विजय दिलाई और भारतीय सेना का मनोबल ऊंचा किया।
4. सर्व शिक्षा अभियान: बच्चों की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए एक क्रांतिकारी पहल।
5. स्वर्णिम चतुर्भुज योजना: यह सड़क निर्माण परियोजना भारत की अर्थव्यवस्था और परिवहन व्यवस्था के लिए मील का पत्थर साबित हुई।
वाजपेयी: कवि और विचारक
वाजपेयी जी केवल एक राजनेता नहीं, बल्कि एक संवेदनशील कवि भी थे। उनकी कविताएँ उनके मनोभाव, संघर्ष, और आदर्शों का दर्पण हैं। उनकी कुछ अमर पंक्तियाँ:
“बाधाएं आती हैं आएं,
घिरे प्रलय की घोर घटाएं,
पाँवों के नीचे अंगारे,
सिर पर बरसे यदि ज्वालाएं।
निज हाथों में हँसते-हँसते,
आग लगाकर जलना होगा,
कदम मिलाकर चलना होगा।”
सिद्धांत और विचारधारा
अटल जी के लिए राजनीति सत्ता प्राप्ति का माध्यम नहीं थी; यह जनसेवा और राष्ट्रनिर्माण का जरिया थी। उन्होंने कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया और हमेशा राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखा।
उनकी विदेश नीति संतुलन, शांति और संवाद पर आधारित थी। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भारत को एक मजबूत और सशक्त राष्ट्र के रूप में प्रस्तुत किया।
सम्मान और विरासत
अटल जी को 2015 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। उनके जन्मदिन, 25 दिसंबर को सुशासन दिवस के रूप में मनाया जाता है। उनकी प्रेरणादायक जीवन गाथा हमें बताती है कि संघर्षों के बीच कैसे आगे बढ़ा जाए और राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखा जाए।
उनकी यह पंक्तियाँ उनकी जीवटता को दर्शाती हैं:
“क्या हार में, क्या जीत में,
किंचित नहीं भयभीत मैं।
कर्तव्य पथ पर जो भी मिला,
यह भी सही, वह भी सही।
वरदान नहीं, मांगूंगा।
हो कुछ पर, हार नहीं मानूंगा।”
अटल जी की अमरता
अटल बिहारी वाजपेयी जी का व्यक्तित्व, कृतित्व और विचारधारा आज भी देशवासियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। उनके शब्द, उनके कार्य और उनकी काव्य रचनाएँ हमें देश के लिए समर्पण और संघर्ष का पाठ सिखाती हैं।
अटल जी न केवल एक नेता थे, बल्कि भारत के आत्मसम्मान और संकल्प के प्रतीक भी थे। उनकी विरासत भारतीय राजनीति और समाज में सदैव अमर रहेगी।
शकुंतला मित्तल
शिक्षाविद् और लेखिका