साल था 1963 । हिंदी सिनेमा के पर्दे पर फ़िल्म “पारसमणि” रिलीज हुई । यह फ़िल्म कई मायनों में अनूठी साबित हुई । बाबूभाई मिस्त्री की यह फिल्म उन विरली फिल्मो में से एक साबित हुई , जो कुछ नहीं होकर भी याद की जाती है। ‘पारसमणि’ वह पहली फिल्म बनी , जिसमें पर्दे पर नजर आने वालों को किसी ने याद नहीं रखा, लेकिन पर्दे के पीछे काम करने वालों को आज भी याद किया जाता है ।
न तो नायक महिपाल याद रहते हैं और न ही नायिका गीतांजलि। याद रहते हैं इसके गाने। किसी संगीतकार की पहली ही फिल्म हिट हो, इसका बिरला नमूना है यह फिल्म। शंकर-जयकिशन की पहली फिल्म ‘बरसात’ के बाद लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने ‘पारसमणि’ में यह कमाल किया। ‘पारसमणि’ की कहानी काल्पनिक है। ऐसी फिल्मों के लिए महिपाल भंडारी सही नायक माने जाते थे।
राजा-रजवाड़ों की कहानी पर बनी यह फिल्म छोटे बजट की होने के कारण तकनीकी दृष्टि से धुंधली थी। रंग बिखरे थे, सेट भी नकली नजर आते थे। यदि गाने न होते तो दर्शक अच्छी नींद निकाल लेते। एसडी बर्मन, नौशाद, मदनमोहन, रोशन, कल्याणजी- आनंदजी, राहुलदेव बर्मन, हुस्नलाल-भगतराम आदि संगीतकारों के अरेंजर रहे लक्ष्मीकांत कुडाळकर और प्यारेलाल शर्मा ने इस फिल्म से जमे-जमाए संगीतकारों को चुनौती पेश की। आने वाले सालों में वे हिंदी के सबसे लोकप्रिय संगीतकार रहे। बड़ी फिल्में मिलने पर भी उन्होंने छोटी फिल्मों से नाइंसाफी नहीं की। प्यारेलाल जी तो आज भी लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं।
विशेषकर इस फ़िल्म का गीत ‘वो जब याद आए, बहुत याद आए ……’ तो आज भी कल्ट गीत माना जाता है। जब यह गीत आपके कानों में पडता है तो याद आते हैं रफी साहब। याद आते हैं इस गीत के संगीतकार लक्षमीकांत प्यारे लाल। यह गीत 1963 में बना था और आधी शताब्दी से अधिक समय के गुजर जाने के बाद भी यह गीत गूंज रहा है और रफी साहब की याद दिला रहा है। इस गीत को कितनी बार ही सुन लें आपका मन नहीं भरेगा।
‘पारसमणि’ के गीत लिखे थे – फारुक कैसर, असद भोपाली और इंदीवर ने। इस फिल्म का हर गीत लोकप्रिय हुआ। बिनाका गीतमाला में कभी भी छोटी फिल्मों के, खासतौर पर स्टंट फिल्मों के गीतों के लिए दरवाजे बंद थे, लेकिन ‘पारसमणि’ के गीतों ने वह तोड़ दिए। सभी गीत बहुत बजे। रोशन तुझी से दुनिया (रफी), वो जब याद आए (रफी-लता), चोरी- चोरी जो तुमसे मिली (लता-मुकेश), मेरे दिल में हल्की सी (लता) ने हलचल मचा दी, साथ ही इस फिल्म का सरताज गीत था ‘हंसता हुआ नूरानी चेहरा’ (लता-कमल बारोट)। इसका ऑर्केस्ट्रेशन जबर्दस्त है। इस फिल्म के संगीत ने लक्ष्मी-प्यारे को आसमान पर पहुंचा दिया। फिल्म फेयर पुरस्कार पाने के लिए उन्हें इंतजार नहीं करना पड़ा। अगले ही साल उन्हें ‘दोस्ती’ के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का अवार्ड मिला। फिर तो अवार्ड पर अवार्ड मिलते रहे।अपने घर का नाम भी उन्होंने इसी फ़िल्म के नाम पर रखा था। ‘पारसमणि’ को वे आज तक नहीं भूले हैं।