नई दिल्ली, 8 मार्च। संघ के वरिष्ठ प्रचारक श्री परमेश्वरम जी को श्रद्धान्जलि देने के लिए आज एनडीएमसी कन्वेंशन सेंटर में विवेकानन्द केन्द्र और दीनदयाल शोध संस्थान ने संगोष्ठी का आयोजन किया। गृहमंत्री अमित शाह व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल जी श्रद्धान्जलि देने मुख्य रूप से उपस्थित रहे।
इस अवसर पर डॉ. कृष्णगोपाल ने श्री परमेश्वरम को श्रद्धान्जलि देते हुए कहा कि वामपंथी विचारधारा की आलोचना आज कोई भी कर सकता है लेकिन 50 के दशक में इनका विरोध करने का साहस व पहल केरल में परमेश्वरम जी ने की। उस समय रूसी क्रांति के बाद सोवियत संघ, चीन, वियतनाम, क्यूमा में आए कम्युनिस्ट शासन का भारत में भी व्यापक प्रभाव पड़ा जिसके कारण भारत में वामपंथ शक्तिशाली रूप ले चुका था। ऐसे समय में केरल में गैर कम्युनिस्ट पार्टियों के 500 से अधिक कार्यकर्ताओं की कम्युनिस्टों द्वारा हत्याएं की गई और 1000 से अधिक विकलांग हुए। देश और केरल की इन चुनौतियों को संघ ने भी स्वीकार किया परमेश्वरम जी ऐसे समय में आगे आए। वे एक-एक पीड़ित परिवार में गए, उनके कष्टों को जाना और उनके समाधन के प्रयास करके कार्यकर्ताओं को संबल प्रदान किया। विघटनकारी शक्तियां हमारी विविधताओं का फायदा उठाकर द्वेश फैलाने की कोशिश करती रहेंगी। लेकिन हिन्दुत्व का जो देश में दर्शन है यह कम्युनिस्टों की तरह संकुचित नहीं बल्कि सर्वसमावेशी है। हिन्दुत्व कितनी भी विषमता विभिन्नताओं में विभाजन की अनुमति न देते हुए सामंजस्य के धागे ढूंढ लेता है। इस मौलिक दर्शन को बार बार प्रतिपादित करने का कार्य श्री परमेश्वरन जी ने किया।
उन्होंने कहा कि श्री परमेश्वरम ने नारायण गुरु जी का आदर्श सबके सामने रखा जिन्होंने अस्पर्श समझी जाने वाली जातियों के लिए वहां मंदिर, गुरुकुल खोले, वेद उपनिषद पढ़ने की व्यवस्था की। उनका मानना था कि समाज में परिवर्तन सामंजस्य से आएगा वर्ग संघर्ष द्वारा नहीं। वर्ग संघर्ष इस देश की प्रकृति में नहीं है। हर समस्या का समाधान सामंजस्य है, समन्वय है यही हमारी सनातन परम्परा है।
सह सरकार्यवाह ने बताया कि जब परमेश्वरम विवेकानन्द केन्द्र में आए तो अलगाव से झूझ रहे देश के सबसे समस्याग्रस्त उत्तर पूर्व भारत को कार्यक्षेत्र बनाया। जहां विद्यालय नहीं थे और कोई वहां नहीं जाना चाहता वहां फिर से सांस्कृतिक राष्ट्रभाव जागृत करने के लिए उन्होंने विद्यालय शुरु करवाए। कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षित करके जनजातीय समाज को देश की मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया। राष्ट्र की सांस्कृतिक व अध्यात्मिक एकता अनेक लेख लिखे।
गृहमंत्री श्री अमित शाह ने इस अवसर पर सरकार की ओर से परमेश्वरन जी को श्रद्धान्जलि देते हुए कहा कि राजनीतिक जीवन में कार्य कैसे करना चाहिए परमेश्वरन जी से एक बार मिलने पर ही उन्हें इस बारे में इतना प्राप्त हो गया जिसका लाभ अभी भी मिल रहा है। परमेश्वरम जी ने कभी स्वयं के लिए नहीं सोचा सदा देश, समाज, विचारधारा के लिए सोचा और जिया। पदम् सम्मान भी उन्हें मिले लेकिन उनसे मिलने के बाद लगा कि यह सम्मान उनके लिए छोटे ही हैं ऐसे निस्वार्थ भाव रखने वालों को सम्मान की कोई जरूरत नहीं होती। संस्थाओं को चिरकाल तक बाधामुक्त तरीके से भटके बगैर कैसे चलाया जाता है इसका उदाहरण उन्होंने भारतीय जनसंघ, दीनदयाल शोध संस्थान, भारतीय विचार केन्द्रम्, विवेकानन्द केन्द्र आदि संस्थानों का मार्गदर्शन देकर प्रस्तुत किया। संघ की प्रचारक व्यवस्था के बारे में जब भी कोई अभ्यास करेगा, लिखेगा, समझने का प्रयास करेगा तो निश्यिचत रूप से परमेश्वरम जी को ध्रुव तारे से अलंकृत किए बगैर कोई नहीं रह सकता। सादगी, समपर्ण, समरसता, सरलता इन सारे गुणों को बड़ी सहजता से अपने कृतत्व में उन्होंने उतारा था।