पहले से ही टूटी हुई कांग्रेस धारा 370 को लेकर बिखरी हुई नजर आ रही है । लीडरशिप विहीन कांग्रेस फिलहाल दिशाहीन नज़र आ रही है । राहुल गांधी के इस्तीफ़े के बाद से ही पार्टी कोई भी मुख्य निर्णय नही ले पा रही और पार्टी किसी भी संजीदा मुद्दे पर एक स्वर में नही बोल पा रही । अध्यक्ष पद को लेकर पहले से ही बिखरी काँग्रेस मोदी सरकार के कश्मीर पर धारा 370 को लिए गए फैसले को लेकर दो फाड़ में नज़र आ रही है और इन सब के बीच गांधी परिवार मूक दर्शक बन तमाशा देख रहा है ।
धारा 370 को हटाये जाने को लेकर जहां काँग्रेस के जनार्दन दिवेदी, कर्ण सिंह , जैसे वरिष्ठ दिग्गज नेता सरकार के पूर्ण समर्थन में हैं वही कई युवा नेता भी भले ही सरकार की प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे हैं मगर जम्मू,-कश्मीर पुनर्गठन बिल को अपना समर्थन दे रहे हैं । कांग्रेस के असम के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा में व्हिप की भूमिका निभाने वाले भुवनेश्वर कलिता ने तो इस बिल पर व्हिप का विरोध करते हुए बिल के समर्थन में पार्टी ही छोड़ दिया ।शुक्रवार को भुवनेश्वर कलिता बीजेपी में भी शामिल हो गए है।
खबरों की माने तो अभी हाल ही में इस बिल को लेकर पार्टी स्टैंड निर्धारित करने के लिए 6 अगस्त को जब कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक हुई तो सभी सदस्य दो गुटों में बंटे नज़र आ रहे थे । जहां पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम और राज्यसभा के नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद इस बिल की ख़िलाफ़त कर रहे थे तो , आर.पी.एन सिंह , ज्योतिदत्यराज सिंधिया , दीपेंद्र हुड्डा जैसे युवा नेता पूरी तरह से इस बिल के समर्थन में थे । उनका कहना था एक देश दो संविधान नहीं चल सकता । सूत्र बताते है कि दीपेंद्र हुड्डा ने तो ये तक कह दिया कि जब जवाहर लाल नेहरू ने ही इसे लागू करते हुए ये कहा था कि कुछ समय बाद इसे हटा दिया जाएगा तो आज देश हित में लिए इस फैसले का विरोध क्यों । बाकी नेताओ का भी कमोबेश यही मानना था । मगर पी. चिदम्बर , गुलाम नबी आजाद जैसे कुछ सीनियर लीडर इन दलीलों से सहमत नहीं थे उनका कहना था कि ऐसा कर के कांग्रेस अपनी आइडिओलॉजी से भटक रही है । जिस धारा को कांग्रेस ने लागू किया आज उंसके हटाये जाने पर समर्थन देने से , कहीं न कहीं जनता के बीच ये संदेश जाएगा कि कांग्रेस विचारधारा की लड़ाई में बीजेपी से हार रही है । पी. चिदंबरम का कहना था कि अगर ऐसी सोच थी तो इस मुद्दे को इसी रूप में कांग्रेस के 2019 के मेनिफेस्ट्टो में क्यों नही शामिल किया गया ।
क्या वजह थी कि ये सुझाव उस वक़्त नही दिया गया । हालांकि काँग्रेस मेनिफेस्टो में धारा 370 को जगह दी गयी थी लेकिन काँग्रेस ने जम्मू कश्मीर के लोगों से वादा किया था कि जब तक काँग्रेस का वजूद है धारा 370 को वो संरक्षित करेंगे । उधर कश्मीर के कांग्रेसी नेता गुलाम नबी आजाद ने भी 370 को समर्थन देते हुए सीडब्लूसी में ये दलील रखी कि कश्मीर की जनता की आवाज़ बनना काँग्रेस पार्टी का धर्म है । इस बहस के दौरान बात इतनी बढ़ गयी कि बीच बचाव के लिए सोनिया गांधी और राहुल गांधी को बीच में आना पड़ा । इस मुद्दे पर कई नेता पार्टी छोड़ने को तैयार हैं।
क्या वजह थी कि ये सुझाव उस वक़्त नही दिया गया । हालांकि काँग्रेस मेनिफेस्टो में धारा 370 को जगह दी गयी थी लेकिन काँग्रेस ने जम्मू कश्मीर के लोगों से वादा किया था कि जब तक काँग्रेस का वजूद है धारा 370 को वो संरक्षित करेंगे । उधर कश्मीर के कांग्रेसी नेता गुलाम नबी आजाद ने भी 370 को समर्थन देते हुए सीडब्लूसी में ये दलील रखी कि कश्मीर की जनता की आवाज़ बनना काँग्रेस पार्टी का धर्म है । इस बहस के दौरान बात इतनी बढ़ गयी कि बीच बचाव के लिए सोनिया गांधी और राहुल गांधी को बीच में आना पड़ा । इस मुद्दे पर कई नेता पार्टी छोड़ने को तैयार हैं।
शनिवार यानी 10 अगस्त को एक बार फिर कांग्रेस वर्किंग कमिटी की बैठक हुई । वैसे तो ये बैठक अध्यक्ष पद को लेकर है माना जा रहा है काँग्रेस के नए अध्यक्ष को लेकर पार्टी किसी निर्णय तक पहुँच सकती है। लेकिन अभी तक इसका औपचारिक ऐलान नहीं हुआ है । मुकुल वासनिक, मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे सीनियर कांग्रेस नेताओं के नाम आगे हैं । लेकिन इस बैठक में एक बार फिर 370 और कश्मीर को लेकर भी चर्चा भी हुई। ऐसे में मुद्दा ये है कि धारा 370 और कश्मीर मुद्दे को लेकर बिखरी काँग्रेस क्या अपने नए अध्यक्ष के लिए एकजुट हो पाएगी ??