आलेख: शिखा काजल
ज़िंदगी के कई रंग हैं. कहीं सुकून है, शांति है, खुशियां हैं तो कहीं… मुश्किलों, परेशानियां और तकलीफों से घिरा इंसान. संसार में कोई भी ऐसा नहीं हुआ, जिसकी नियति ने परीक्षा ना ली हो. हमारी हो या आपकी ज़िंदगी, लोगों की माने तो ये ज़िंदगी आसान नहीं पर मैं कहती हूं इतनी मुश्किल भी नहीं है पर वो तब जब हम खुद की पहचान करें.
सनातन धर्म में विश्वास है मेरा. सनातन का अर्थ है अनादि अर्थात जिसके प्रारंभ का पता ना हो और जिसका प्रारंभ पता ना हो उसका अंत कैसा. आदि और अनंत से विहीन है ये धर्म. बचपन से देवी देवताओं के किस्से सुनते आई हूं. एक ऐसे परिवार से आती हूं जहां लोग एक पल को खाना भूल सकते हैं लेकिन मंदिर में भोग लगाना नहीं. संसार के रचयिता ‘भगवान’ इनमें पूरा विश्वास है मेरा और इसी विश्वास से मैं कहती हूं- हां, मैं भगवान हूं. भगवान बनना घमंड नहीं, विश्वास है नेकी का और विपरीत परिस्थितियों में कभी ना हारने का. गीता में श्रीकृष्ण ने कहा था- सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो मतलब कि मैं सभी प्राणीयों के दिल में बसता हूँ. अहं ब्रह्मास्मि ये वाक्य मानव को महसूस कराता है कि जिस भगवान ने बडे बडे सागर, पर्वत, ग्रह, ये पुरा ब्रह्मांड बनाया उस अखंड शक्तिस्रोत का मैँ अंश हूँ तो मुझे भी उसका तेज है जिसे जागृत किया जाना चाहिए. ऐसा करने पर ही मनुष्य की नैतिक उन्नति की शुरुआत होती है. (अहं ब्रह्मास्मि – यजुर्वेदः बृहदारण्यकोपनिषत् अध्याय 1 ब्राह्मणम् 4 मंत्र 10 )
वेद पुराणों में कहा गया है कि सृष्टि के कण कण में बसते हैं भगवान. हमारे और आपके अंदर भी विराजमान हैं भगवान. धर्मिक किताबों में यकीन ना हो तो कभी किसी जरूरतमंद के काम आकर देंखें. उनकी आंखों में दिखेगा आपको आपके अंदर के भगवान का सम्मान. भगवान वो शब्द है जो अच्छे कर्म का बोध कराता है. अच्छे कर्म वो जो दूसरों के चेहरे पर मुस्कान लाता है. ये अच्छे कर्म ही हैं जो इस संसार को चला रहे हैं. भक्ति विज्ञान है अंधविश्वास नहीं. जैसे पानी में बिजली है पर पानी से ये बिजली एक जानकार ही पैदा कर सकता है और यही विज्ञान है. ठीक वैसे ही कण कण में परमात्मा विद्यमान है और ये भी उसे समझने वाला ही देख सकता है.
परेशानियां आई नहीं कि लोग मंदिरों के दरवाज़े खटखटने लगते हैं. ये समझने की कोशिश नहीं कर करते कि परेशानियों को निपटने के गुर भी उनके अंदर ही हैं. वो खुद परमात्मा का अंश हैं.
आज मिश्रा जी के घर जाना हुआ. मिश्रा जी हमारे पड़ोसी हैं. मोहल्ले का हर घर उन्हे और उनके परिवार को अच्छी तरह से पहचानता है. शायद ही कोई ऐसा मौका हुआ हो जब कभी कोई मुश्किल में पड़ा हो और मिश्रा जी के परिवार ने उनकी हरसंभव मदद ना की हो. जानने वालों में मिश्रा परिवार का काफी सम्मानित है. उड़ती उड़ती ख़बर सुनी थी मैंने कि मिश्रा जी के परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है. पिछले डेढ़ सालों में हंसता खेलता ये परिवार तकलीफों से घिर गया. मैं मिश्रा जी और उनके परिवार को करीब 15 सालों से जानती हूं. मिश्रा जी एक बेहद ही मामूली घराने से आते हैं. वो वक्त था जब एक अदना सी नौकरी थी उनकी और पगार भी बस इतनी कि पति-पत्नी और 4 बेटो का किसी तरह गुजारा चल जाए. बड़े बेटे की हाल ही में शादी की थी उन्होने. बच्चों को कुछ ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं सके थे. आर्थिक रुप से भले ही मजबूत ना हों लेकिन जरूरत पड़ी तो कभी कोई इनके घर से खाली नहीं लौटा. आज लंबे समय बाद उनसे मिलने उनके घर गई थी मैं. घर के हालात अच्छे नहीं दिखे. बड़े बेटे की बीमारी ने सबको तोड़ के रख दिया. पिछले दो सालों में लाखों खर्च हो चुके पर बेटा बिस्तर से नहीं उठा. शुगर की बीमारी ने शरीर खोखला कर दिया है और साथ ही कर्ज में डूब गए मिश्रा जी भी. बातों बातों में चाची (मिश्रा जी की पत्नी) ने बताया कि कैसे वो बड़े भइया (मिश्रा जी के बड़े बेटे) के इलाज के लिए मुम्बई, चेन्नई, दिल्ली, चंडीगढ़ के अस्पतालों के ख़ाक छान चुके हैं पर नतीजा सिफर रहा. अब भगवान से चमत्कार की आस लिए मंदिर-मंदिर चक्कर काट रहीं हैं. भारी कर्ज में डूब चुके हैं पर मजाल है कि कभी किसी ने कहीं की आस दिखायी हो और उन्होने उस दर पर माथा ना टेका हो. आज फिर कहीं से कर्ज लिया है और महाशिवरात्रि के पूजा की तैयारी कर रही हैं.
करीब घंटे भर बैठने के बाद मैंने उनसे इजाज़त ली और बाहर निकल गई. समझ नहीं आ रहा था कि परिस्थिति ज्यादा खराब थी या परिस्थितियों से लड़ने की उस परिवार की हिम्मत जवाब दे गई थी. दूसरों में अकूत धैर्य और हौसलों का संचार करने वाले आज खुद हारे हुए दिख रहे थे. मन में ये सवाल उठ रहा था कि क्या एक ऐसा घर जहां सुबह शाम राम चरित्र मानस का पाठ हो, सुंदरकांड की चौपाईयां पढी जाएं, घर में कपूर और धूप की सुगंध हो और सबसे अहम लोगों के मन निश्चल हो उस घर में भगवान का वास नहीं. क्या कर्ज लेकर पंडित बुलाकर विशेष पूजा करने से परेशानियों का समाधान हो जाएगा. अगर ऐसा होता तो पिछले डेढ़ सालों में दर्जनों बार इस घर में ऐसी विशेष पूजाएं की गई थी. फिर भी स्थिति में सुधार नहीं हुआ. हुआ तो बस इतना कि इनका धैर्य जवाब देने लगा. चिंता ने हालात और बिगाड़ दिए.
आप सोच रहे होंगे कि मिश्रा जी के परिवार कि इस लाचारी को मैं क्यों आपसे साझा कर रही हूं तो आपको बता दूं कि मेरी नजर में मिश्रा जी और उनकी पत्नी भगवान का दर्जा रखते हैं. अगर वो ना होते तो आज मेरी एकलौती बेटी जो दस साल की है मैं उसे कबका खो चुकी होती. मेरी बच्ची महज तीन महीने की थी जब वो गंभीर रूप से बीमार पड़ी थी. डॉक्टरी इलाज का असर नहीं दिख रहा था. आज जिस हालात में मिश्रा परिवार है ठीक उसी तरह मेरी भी धैर्य टूट चुका था तब यही वो लोग थे जिन्होने मुझे और मेरी बच्ची को संभाला. मुझे हिम्मत ना हारने का हौसला दिया. मेरी बच्ची की कई दिनों तक चौबीसों घंटे देखभाल की. डॉक्टरी के साथ साथ देसी इलाज चलाया, जिसका ज्ञान मुझे ना के बराबर था. पहली बार मां बनी थी. नौकरी की वजह से घर से दूर थी. परिवार का कोई बड़ा भी नहीं था साथ, जो सिखाता. मिश्रा जी के परिवार की वजह से मेरी बच्ची एक बार फिर स्वस्थ थी. इस घटना ने ना सिर्फ मुझे हौसला रखना सिखाया बल्कि उनके अंदर भगवान के साक्षात दर्शन भी कराए.
मिश्रा जी के घर के हालात ने मुझे बेचैन कर दिया. बीमारी से ज्यादा तकलीफ उनके हारते हुए चेहरे देखने की हो रही थी. मन मानने को तैयार ही नहीं था कि हालात काबू में नहीं. जिज्ञासावश मैं एक ऐसे शख़्स के पास गई जो ना सिर्फ डॉक्टर था बल्कि बड़े भइया की बीमारी और उसके इलाज से वाकिफ था. बातचीत के दौरान पता चला कि सिर्फ शुगर से बीमारी नहीं बढ़ रही बल्कि जरूरत से ज्यादा चिंता और खुद से भरोसा उठना भइया को बिस्तर से उठने नहीं दे रहा. चिंता इस बात की कि वो बीमार है, बीमारी लंबी क्या चली उन्हे लगने लगा है कि शायद वो कभी ठीक ही नहीं हो पाएं उपर से बीमारी में लगने वाले पैसे और बढ़ता कर्ज जो उन्हे लगता है कभी चुका ही नहीं पाएंगे. जाहिर है ऐसे में खुद से भरोसा उठना लाज़मी है. बेटे को बिस्तर पर हारा देख माता-पिता भी हिम्मत हार चुके हैं.
बीमारी भी समझ आ चुकी थी हालात भी. वो वक्त जिसनें मुझ इन लोगों में भगवान दिखाया आज उसी वक्त ने मुझमें वो हौसला दिया है कि मैं खुद भगवान बन सकूं. मुझे विश्वास है कि हालात इस परिवार को और नहीं तोड़ सकेगा. अब मिश्रा जी और उनका परिवार नहीं हारेगा.