पटना : बिहार के सेनारी नरसंहार मामले में मंगलवार को जहानाबाद की सिविल कोर्ट ने 15 दोषियों को सजा सुनाया है. अदालत ने इस मामले में 10 दोषियों को फांसी, तीन को आजीवन कारावास की सजा के साथ ही तीन लोगों पर एक-एक लाख रुपये आर्थिक दंड लगाया है. वहीं, दो दोषियों को बाद में सजा सुनायी जायेगी. अदालत के इस फैसले के मद्देनजर सेनारी गांव की सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गयी है.
इससे पहले 27 अक्टूबर को इस मामले की सुनवाई करते हुए अपर न्यायाधीश तृतीय रंजीत कुमार सिंह की अदालत ने 15 आरोपितों को दोषी करार दिया था. वहीं, साक्ष्य के अभाव में 23 लोगों को रिहा किया गया था. अदालत ने धारा 146, 302, 149, 307, 149, 3/4 एस एक्ट के तहत अभियुक्तों को दोषी करार दिया था. अदालत ने सजा सुनाने के लिए 15 नवंबर की तिथि मुकर्रर की थी. अदालत के द्वारा सजा सुनाए जाने को लेकर पक्ष और विपक्ष दोनों की नजर अदालत पर टिकी हुई थी.गांव की ही चिंतामणि देवी ने करपी थाने में 15 नामजद समेत चार-पांच सौ अज्ञात हमलावरों के खिलाफ एफआइआर दर्ज करायी थी. चिंता देवी के बयान पर गांव के 14 लोगों सहित कुल 70 नामजद लोगों को अभियुक्त बनाया गया था. चिंता देवी के पति अवध किशोर शर्मा व उनके बेटे मधुकर की भी इस वारदात में मौत के घाट उतार दिया था. चिंता देवी की तकरीबन पांच वर्ष पूर्व मौत हो चुकी है. मामले में कुल 67 लोग गवाह बने थे जिसमें 32 लोगों ने गवाही दी थी. बिहार में नब्बे के दशक में सवर्णों और पिछड़ों के बीच जमीन पर कब्जा और मालिकाना हक को लेकर चलने वाले हिंसक संघर्ष के परिणास्वरूप इस दौर में कई लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी. ऐसी ही घटनाओं में से एक सेनारी नरसंहार की भी घटना थी. 18 मार्च 1999 को प्रतिबंधित नक्सली संगठन एमसीसी ने जहानाबाद जिले के इस सवर्ण बाहुल्य गांव में होली से ठीक पहले खून की होली खेली थी. 500-600 की संख्या में रहे हथियारबंद लोगों ने उस समय सेनारी गांव पर हमला बोल दिया था जब गांव के सारे लोग अभी ठीक से खाना भी नहीं खा पाये थे.
एक के बाद एक 34 जानें चीख में तब्दील हो गयी. गांव के लोग एक-एक कर के मौत के घाट उतार दिये गये. उन्हें गांव के उत्तर सामुदायिक भवन के पास ले जाकर गर्दन रेतकर हत्या कर दी गयी थी. गांव स्थित ठाकुरबाड़ी के समीप नक्सलियों ने घटना को अंजाम दिया था. इस घटना में सात लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे. बताया जाता है कि नक्सलियों ने करीब 40 से अधिक लोगों को अपने कब्जे में ले लिया था. महिलाओं को घरों से बाहर निकलने नहीं दिया जा रहा था. उस दौरान बिहार में राजद सत्ता में थी.
केंद्र सरकार में बतौर मंत्री जार्ज फर्नाडींस, नीतीश कुमार और यशवंत सिन्हा ने तब सेनारी का दौरा किया था और नेताओं के आने के बाद हीं शवों को उठाया गया था. घटना के 17 साल बीतने के बाद भी गांव के लोग उस खौफनाक रात के मंजर को याद कर सिहर उठते हैं.