नई दिल्ली : नई दिल्ली में चल रहे विश्व पुस्तक मेले में आज ‘जानिये संघ को’ तथा ‘Know About RSS’ शीर्षक से दो पुस्तकों का लोकार्पण राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक तथा भारतीय शिक्षा मंडल के अखिल भारतीय संगठन मंत्री श्री मुकुल कानितकर द्वारा किया गया. श्री अरुण आनंद की लिखी इन पुस्तकों को प्रभात प्रकाशन ने प्रकाशित किया है. इस अवसर पर श्री मुकुल कानितकर ने पुस्तकों के विषय ‘जानिये संघ को’ इस पर चर्चा करते हुए बताया कि जिसने एक बार ध्वज प्रणाम कर लिया उसको हम अपनी लिस्ट में पर्मानेंट स्वयंसेवक मानते हैं. संघ को बाहर रह कर नहीं समझा जा सकता, संघ को समझने के लिए शाखा में आना आवश्यक है. संघ में आने पर व्यक्ति स्वतः ही व्यवस्थित हो जाता है, वह बाद में किसी भी क्षेत्र में जाता है तो दिया गया कार्य सर्वोत्तम ढंग से पूर्ण करता है.
उन्होंने बताया कि संघ में प्रचारक बनने पर परिवार को छोड़ा नहीं अपितु और विस्तृत किया जाता है. विवाह न करना समाज से सन्यास न होकर यहां समाज से जुड़ने का माध्यम बन जाता है और एक प्रचारक के लिए पूरा देश अपना परिवार बन जाता है. उन्होंने अपने अनुभव बताए कि प्रचारक बनने के बाद वह भारत में वह जहां-जहां भी गए, वहां अनेक परिवारों ने उन्हें अपने भाई, बेटे जैसा प्रेम दिया. जिससे महसूस होता है कि मेरा परिवार इतना बड़ा हो गया है. इसी तरह से संघ अपने आप में बहुत सरलता से खड़ा किया हुआ तंत्र है और कुछ नहीं है. बाहर से देखने वाले को इतना कांट्रोडिक्शन दिखेगा, यह स्वभाविक ही है क्योंकि संघ इतना बड़ा है कि परस्पर विरोधी चीजें इसमें समावेशित हो जाती हैं. इससे कोई दिक्कत नहीं होती. संघ में सब कुछ बदल सकता है, गणवेश ही नहीं संघ में तंत्र में भी बदल हो सकता है. आज से 15 साल पहले संघ में प्रचार विभाग नहीं था. परमपूज्य गुरु जी के पत्रों में लिखा है ‘प्रसिद्धि पराणूप’, यह मराठी का शब्द है, जिसका अर्थ है प्रसिद्धि से दूर रहना. इसलिए गुरुजी फोटो नहीं खिंचवाते थे, उनकी फोटो बहुत कम मिलेगी. लेकिन 15 साल पहले संघ को समझ में आया कि युग बदल रहा है, युग की व्यवस्थाएं बदल रही हैं, उसमें यदि हम नहीं बात करेंगे तो लोग हमारे बारे में मन में जो आया वो लिखेंगे. उससे अच्छा है कि हम ही अपने बारे में बताना शुरू करें. इसलिए सूचनाओं-विचारों को प्रवाह देने के लिए संघ में प्रचार विभाग बना.
श्री कानिटकर ने कहा कि संघ ने स्वयं को युगानुकूल रखने के लिए लचीला बनाया है और यह संघ की ताकत भी है. वास्तव में यह हिन्दू धर्म, हिन्दू समाज और हिन्दू संस्कृति की ताकत है. इतने हजारों वर्षों से, हजारों आक्रमणों के बाद भी हिन्दू संस्कृति जीवित है, इसका एकमात्र कारण है कि यह फ्लैक्सिबल है, विकेन्द्रित है, किसी एक स्तम्भ पर टिकी हुई नहीं है. इसमें किसी एक जगह से बता दिया कि यह करो, ऐसा नहीं है. अलग-अलग रूप लेकर विविधता से अपने आपको ढालें, यही बात संघ में है. यही संघ की विशेषता है. इसलिए संघ पर पुस्तक लिखना बहुत जबरदस्त काम है जो अरुण आनन्द जी ने किया.
उन्होंने बताया कि संघ में भाव का बड़ा महत्त्व है. लोग हम पर आरोप लगाते हैं कि इसमें तो इंटैलेक्चुअल हैं ही नहीं और सारे भावना प्रधान लोग हैं. बिलकुल सही कहते हैं वो, क्योंकि हमारा मानना है कि भावना के बिना अस्तित्व ही नहीं है. भावना ही मूल बात है. योग का दर्शन भी यही कहता है कि भाव से ही विचार का जन्म होता है. यह पुस्तक जिसके लिए लिखी गई है वो तर्क प्रधान शिक्षा से निकला हुआ है. उसके लिए हृदय से ज्यादा महत्त्व मस्तिष्क का है. हमारे लिए हृदय ज्यादा महत्त्व रखता है, यह हमारा विचार है, यह हमारी सोच है उस पर हम काम करते हैं. अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देने वाले लोग हृदय से ही निकलते हैं, दिमाग से नहीं. इसलिए हमको हृदय की बात ज्यादा जचती है, और ज्यादा आगे जाती है. लेकिन तर्क प्रधान लोगों को बताने के लिए भावना को बाजू में रखकर लिखना था. इसलिए उन्होंने स्ट्रक्चर पर ज्यादा ध्यान दिया.
उन्होंने बताया कि परम पूज्य डॉ. हेडगेवार जी की यदि कोई सबसे बड़ी देन होगी तो वह आर्गनाइजेशन साइंस है. मैं जब अवसर मिले तो आईआईएम के लोगों से चर्चा करता हूं कि आप संघ की आर्गनाइजेशन वर्किंग के ऊपर रिसर्च करवाइये. संघ में हम लोग कहते हैं संघ कुछ नहीं करता-स्वयंसेवक सब कुछ करता है. इसलिए जितने यह अनुशांगिक संगठन विविध क्षेत्रों के, जैसे भारतीय शिक्षा मंडल. संघ की प्रेरणा से स्वयंसेवकों ने भारतीय शिक्षा मंडल को बनाया. लेकिन संघ का कोई कंट्रोल नहीं है, इसमें संघ का कोई डाइरेक्शन नहीं है. यह स्वयंसेवकों के खड़े किए हुए काम हैं. स्वयंसेवक सब कुछ करता है, संघ क्या करता है, संघ एक ही काम करता है, संगठन करता है. लोगों को जोड़ता है. सबको जोड़ता है. संघ के लिए कोई अछूता नहीं है, संघ ‘राष्ट्र हित के लिए राष्ट्रीयता और स्वयं की सेवा की भावना से सभी को संगठित करेगा. यह कार्य संघ वॉलियंट्री नहीं करेगा. वॉलियंट्री जो राष्ट्र के लिए काम करना चाहता है वो संघ में आ जाए. लोगों को जोड़ना यही काम है. जो शाखा में जाएगा उसको यही अनुभव होगा. समाज में संगठन नहीं, समाज का संगठन, यह बहुत महत्त्वपूर्ण है. संघ समाज में कोई संगठन नहीं खड़ा करना चाहता संघ समाज को ही संगठित करना चाहता है. शाखा में आने से पहले कुछ जानकारी लेने के लिए यह पुस्तक जरूर पढ़नी चाहिए. लेकिन जिनको संघ समझना है उनको तो शाखा में जाना पड़ेगा, उसके बिना संघ समझ में नहीं आएगा. आदि कवि वालमीकि ने भी देखा जब उस क्रोंच पक्षी को, उनके मन में करुणा जगी तो रामायण महाकाव्य बना. वो भी भाव से ही निकला था. तो विसंगतियों को जोड़ने का काम करने वाले लेखक होते हैं. संघ जैसे क्रियावान संगठन का शब्दबद्ध करके परिचय देने का काम, एक बहुत बड़ी विसंगति को सुलझाने का काम के लिए इस पुस्तक के लेखक बधाई के पात्र हैं.
अंत में प्रश्नों के उत्तर देते हुए श्री कानितकर ने कहा कि स्वभावतः लोग किसी के विरोध में एकत्र होते हैं, लेकिन संघ एकमात्र संगठन है जो बहुत सकारात्मक विचार लेकर एकत्र हुआ है. क्योंकि डॉ. हेडगेवार ने कहा है कि जो किसी प्रकार के भय से अथवा लोभ से इकट्ठे आते हैं कि मुझ पर आक्रमण हुआ है इसलिए संगठित हो गए बचने के लिए तो यह भय से हुआ. या हम सब इकट्ठा आएंगे, कम्पनी चलाएंगे तो लाभ होगा तो यह लोभ से हुआ. इन सब बातों से जो संगठन होता हैं, वह सही वो सही नहीं होता. संघ ने संगठन व्यक्ति निर्माण के लिए किया, कैरेक्टर बिल्डिंग यह एक काम संघ में होता है. इसके लिए शाखा में खेल खेलते हैं ताकि शारीरिक रूप से स्वस्थ रहें मजबूत रहें, उसके लिए बौद्धिक होता है. संघ ने कश्मीर में जाकर कश्मीरी पंडितों को संगठित करने का काम किया. कैराना में भी संघ यह कार्य कर रहा है, बंगाल में भी यही संघ करेगा.