सोनपुर : बिहार के विश्व प्रसिद्ध सोनपुर मेले में इस बार रौनक कम और सन्नाटा ज्यादा है. मेले में मीना बाजार से लेकर मिठाई की दुकानों तक, सरकारी प्रदर्शनी स्टॉल से लेकर छोटे जानवरों और पशु-पक्षियों के मार्केट में भी उत्साह नहीं है. इस बार का मेला एक अघोषित मायूसी भरे माहौल में तब्दील हो गया है. स्थानीय लोग नोट बंदी को वजह मान रहे हैं तो कुछ बाहर से व्यापारियों का नहीं आना भी इसका कारण मान रहे हैं. कहते हैं कि सोनपुर मेले में सुई से लेकर दैनिक जीवन में काम आने वाली सारी सामग्री और हाथी घोड़े तक बिकता था. मेले की पहचान ही वैश्विक स्तर पर पशु मेले के रूप में होती थी. इस बार के मेले में वह बात नहीं रही. मेले के खरीदार पेटीएम और क्रेडिट कार्ड वाले नहीं हैं. मेले में खरीद बिक्री के लिये कैश करेंसी का ही प्रयोग होता है. गत 40 सालों से सोनपुर मेले को करीब से देखने वाले मोहर पासवान दिघवारा के रहने वाले हैं. बातचीत के क्रम में उन्होंने बताया कि 12 नवंबर को मेला शुरू हुआ, मात्र आठ दिन हुए हैं, आप स्वयं मेले की स्थिति देख सकते हैं. हाथी बस दिखाने के लिये आये और चले गये. सरकार द्वारा लगायी गयी प्रदर्शनी में लोग नहीं. चिड़ियों की खरीद बिक्री पर रोक है. कुत्ते भी नहीं बिक रहे हैं. घोड़ों की बिक्री भी काफी कम हो रही है. जानवरों के बाजारों में सन्नाटा पसरा है. मोहर पासवान की माने तो धीरे-धीरे मेला अपनी पहचान खोते जा रहा है. उन्होंने बताया कि नोटबंदी तो एक अलग कारण है लेकिन अब मेले के प्रति लोगों का आकर्षण भी पहले की तरह नहीं रहा.छपरा निवासी और बिजनेस मैन जगत नंदन सहाय कहते हैं कि मेले में कुछ खरीदने जाएं तो लोग नये नोट मांगते हैं, नहीं तो पुराने नोटों में सौ और पचास के नोट मांगते हैं. उनका कहना है कि इस मेले से पहले लोग अपने लिये सालभर काम में आने वाली चीजें खरीदते थे. गृहस्थी के सामान, कपड़े, ऋंगार के सामान, खिलौने और कंबल के अलावा अनाज और आचार तक सोनपुर मेले से खरीदकर ले जाते थे. अब आपको किसी भी दुकान पर खरीदार नहीं मिलेंगे. सहाय की माने तो 75 फीसदी खरीदारी कम हो गयी है. उनके मुताबिक इस बार के मेले में सन्नाटे की वजह नोटबंदी है.