नई दिल्ली: भारत जैसी कुटुंब व्यवस्था दुनिया के किसी देश में नहीं है और अब ये विश्व के लिए प्रेरणा का श्रोत है क्योंकि कुटुंब में जोड़ने की ताकत है. सरसंघचालक डॉ. मोहनराव भागवत ने दिल्ली में राष्ट्र सेविका समिति के तीन दिवसीय अखिल भारतीय कार्यकर्ता प्रेरणा शिविर का उद्घाटन करते हुए मातृशक्ति एवं परिवार के संस्कारों पर विशेष बल दिया.
उन्होंने कहा कि मातृशक्ति के बिना भारत न अपने परम वैभव को पा सकता है न ही विश्व को परम वैभव पर ले जा सकता है.
वर्तमान समस्याओं के बारे में अपने विचार रखते हुए उन्होंने कहा कि जिस देश के लोग समुद्र लांघकर दूसरे देश में जाने को भी समस्या समझते थे. आज उस देश के लोग मंगल पर जा रहें हैं. लेकिन, साथ ही विज्ञान और प्रगति के कारण पर्यावरण की समस्याएं जन्म ले रही हैं. पूरी दुनिया आज पर्यावरण की चिंता कर रही है. दुनिया भर में पर्यावरण को बाचने के लिए उसमें केवल समीक्षा होती है. लेकिन, सम्मेलनों में जो तय किया जाता है वो पूरा होता है क्या?
उन्होंने सुझाव दिया कि अब मनुष्य को अपने छोटे-छोटे स्वार्थ छोड़ने पड़ेंगें. क्योंकि स्वार्थ ही मनुष्य के विनाश का सबसे बड़ा कारण है. मनुष्य अपने आप को सृष्टि का स्वामी मानने लगा है. सृष्टि से हमारे संबंध एक उपभोक्ता के संबंध बन गए हैं और यही फाल्ट लाइन मनुष्य को गर्त की ओर ले जा रही है.
आजकल पांच सौ और एक हजार के नोटों का बंद किया जाना चर्चा का विषय है. मोहन भागवत जी के भाषण में ये विषय भी आया. उन्होंने कहा कि आधुनिक तकनीक देखते हुए ये लगता है सारा लेन-देन कैशलेस हो जायेगा. भविष्य में बढ़ती कट्टरता और आतंकवाद पर चिंता जताते हुए कहा कि आज कट्टरता के कारण मनुष्य ही मनुष्य का जानी-दुश्मन बन गया है. आतंकवाद पर चर्चा करने में ऐसे लोग और देश भी शामिल हैं जो आतंकवाद को बढ़ावा और प्रश्रय दे रहें हैं.
राष्ट्र सेविका समिति ने अपनी स्थापना के 80 वर्ष पूरे होने के अवसर पर दिल्ली में तीन दिन के प्रेरणा शिविर का आयोजन किया है. जिसमें भारता के कोने-कोने से लगभग 3000 सेविकाएं हिस्सा ले रहीं हैं. दिल्ली के छत्तरपुर में एक लघु भारत की झलक देखी जा सकती है. जहां लद्दाख से लेकर केरल तक और सौराष्ट्र से लेकर अरुणाचल तक की संस्कृतियों का अनूठा संगम देखने को मिल रहा है. सेविकाएं अपने-अपने राज्यों की पारंपरिक वेश-भूषाओं में नजर आ रही हैं.
उदघाटन समारोह में जैन मुनि श्री जयंत कुमार जी भी उपस्थित थे. उन्होंने कहा कि संघ और जैन धर्म त्याग की राह पर चलते हुए समाज और देश के लिए सराहनीय कार्य कर रहें हैं और ये एक नदी के दो किनारे समान हैं. उन्होंने कहा कि त्याग ही भारतीय सोच का मूल है. उन्होंने इस बात पर चिंता जताई की ज्यादातर सत्ताधारी लोग पहले अपना स्वार्थ, फिर पार्टी का स्वार्थ और अंत में राष्ट्रहित के बारे में सोचते हैं. लेकिन सबसे पहले देश हित आना चाहिए.
राष्ट्र सेविका समिति की अखिल भारतीय महासचिव सीता अन्नदानम् ने सेविका समिति की 80 वर्ष की गौरवमयी यात्रा को बहुत संक्षेप में रखा और गतिविधियों का लेखा-जोखा भी दिया.
इस उद्घाटन समारोह में अनेक जानी-मानी महिलाएं विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित थीं जिनमें गोवा की माननीया राज्यपाल श्रीमती मृदुला सिन्हा, पंजाब केसरी समूह की निदेशिका श्रीमती किरण चोपड़ा और अनेक केंद्रीय मंत्रियों की पत्नियां भी उपस्थित रहीं.