छठ के दूसरे दिन पूरी आस्था और परंपरा के साथ खरना की पूजा की गई. इसी छोटी छठ भी कहते हैं. व्रति दिन भर भूखे रहकर संध्या में पूजा कर खीर का प्रसाद ग्रहण करते हैं. जिसके बाद उन्हे फिर छठ पर्व सम्पन्न होने के बाद ही भोजन ग्रहण करना होता है. रविवार की शाम को संध्या अर्ध्य दिया जाएगा. खरना के साथ ही श्रद्धालु संध्या अर्ध्य की तैयारियों में जुट गए हैं. खरना के दिन से ही छठ व्रत का उपवास शुरू हो जाता है. दिनभर व्रती निर्जला उपवास के बाद शाम को मिट्टी के बने नए चूल्हे पर आम की लकड़ी की आंच से गाय के दूध में गुड़ डालकर खीर और रोटी बनाते हैं. उसके बाद इसे भगवान सूर्य को केले और फल के साथ भोग लगाकर फिर प्रसाद के रूप में इसे ग्रहण करते हैं. पहले इस प्रसाद को व्रतधारी ग्रहण करती हैं. खरना का प्रसाद ग्रहण करने के बाद अब व्रती लगातार 36 घंटे तक निर्जला उपवास के बाद सोमवार को उगते हुए सूर्य को जल अर्पण करने बाद जल-अन्न ग्रहण करेंगी.देश भर में छठ के मौके पर जगह-जगह गूंज रहे गीतों से पूरा वातावरण भक्तिमय हो गया है. वहीं छठ घाटों को भी संजाने के काम को अंतिम रूप दिया जा रहा है, बिहार के पटना में लाखों की संख्या में लोग गंगा किनारे सूर्य को अर्घ्य देने के लिए पहुंचेंगे. पटना के तमाम घाटों को भव्य तरीके के सजाया गया है. साथ ही दिल्ली में ITO के पास यमुना के तट पर भी भारी संख्या में भक्त अर्घ्य देने पहुंचेंगे, यहां भी तैयारियां जोरों-शोरों से चल रही है. इसके अलावा पूरे बिहार-झारखंड में नदी, नहर और तालाब के किनारे अर्घ्य देने के लिए घाट बनाए गए हैं.
छठ पर्व केवल एक पर्व नहीं है बल्कि महापर्व है जो कुल चार दिन तक चलता है। नहाय खास से लेकर उगते हुए भगवान सूर्य को अर्घ्य देने तक चलने वाले इस पर्व का अपना एक ऐतिहासिक महत्व है।
छठ पर्व को किसने शुरू किया इसके पीछे कई ऐतिहासिक कहानियां प्रचलित हैं। पुराण में छठ पूजा के पीछे की कहानी राजा प्रियंवद को लेकर है। कहते हैं राजा प्रियवंद को कोई संतान नहीं थी तब महर्षि कश्यप ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को याहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन वो पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ। प्रियंवद पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने राजा से कहा कि क्योंकि वो सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं इसी कारण वो षष्ठी कहलातीं हैं। उन्होंने राजा को उनकी पूजा करने और दूसरों को पूजा के लिए प्रेरित करने को कहा।