नीति आयोग के ताजा आंकड़े के मुताबिक, बिहार में प्रजनन दर (टीएफआर) अन्य राज्यों की तुलना में सबसे अधिक होने के बावजूद बड़ी संख्या में बिहार की महिलाएं परिवार नियोजन के दायरे से बाहर हैं। परिवार नियोजन के आपरेशन का प्रतिशत मात्र 36 रहने के बावजूद महिलाएं कंट्रासेप्टिव का लाभ नहीं ले पा रही हैं।
मात्र 23 फीसद महिलाएं ही इसे अपना रहीं हैं। कॉन्ट्रासेप्टिव को हां कहने वाली महिलाओं की संख्या छह जिलों में तो दस फीसद से भी कम है। पश्चिम चंपारण में मात्र 3.9 फीसद ही इसका इस्तेमाल कर रही हैं।
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अहम बात यह है कि प्रदेश में बालिकाओं की कम उम्र में शादी का 50 प्रतिशत से अधिक रेट रहने के बावजूद 15-19 आयु वर्ग की मात्र दो प्रतिशत शादीशुदा युवतियां ही कॉन्ट्रासेप्टिव का इस्तेमाल कर रही हैं।
यूनाइटेड नेशंस फाउंडेशन द्वारा एकत्रित डाटा बताता है कि 30-39 आयु वर्ग की महिलाओं में यह प्रतिशत 35 का है। कम उम्र में गर्भवती होने के कारण करीब 50 फीसद गर्भ ‘हाई रिस्क प्रेग्नेंसी’ की श्रेणी में आते हैं। इसके चलते भी सूबे में शिशु मृत्यु दर 38 है जो कि 34 के राष्ट्रीय औसत के मुकाबले अधिक है। वहीं, मातृ मृत्यु दर 130 के राष्ट्रीय औसत के मुकाबले यहां 165 है।
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स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम कर रही संस्था ‘सेंटर फॉर कैटेलाइजिंग चेंज’ की कार्यपालक निदेशक अपराजिता गोगोई बताती हैं कि शादी के तुरंत बाद ही युवतियों पर बच्चे को जन्म देने का दबाव परिवार की ओर से बनाया जाने लगता है।
ऐसे में उनके पास खुद से बच्चे प्लान करने का अॉप्शन ही नहीं बचता। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे(एनएफएचएस) के चौथे चरण की रिपोर्ट बताती है कि बिहार में मात्र 63 प्रतिशत युवतियोंं को ही ‘रीप्रोडक्टिव हेल्थ’ से संबंधित जानकारी मिल पाती है।
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युवाओं में यह प्रतिशत 56 का है। परिवार के दबाव और जानकारी के अभाव में ये युवतियां दो बच्चों के बीच गैप भी बरकरार नहीं रख पाती हैं। बिहार इस मोर्चे पर भी अन्य राज्यों से पीछे हैं। दो बच्चों के बीच गैप का यहां प्रतिशत 44.4 का है, जबकि राष्ट्रीय औसत 51.9 प्रतिशत है।